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________________ गाथा २ प्रश्न २८--देह बराबर प्रात्माके सम्बन्धमे क्या एक ही दृष्टि है या अन्य भी ? उत्तर--इस सम्बन्धमे ३ रष्टिया है- (१) अशुद्धव्यवहार, (२) शुद्धव्यवहार (३) निश्चय । अशुद्धव्यवहारसे तो जीव जिस गतिमे, जिस देहमे रहता है उस देहके परिमाण व्यञ्जन पर्याय (प्राकार) हैं तथा उस देहके बढने घटनेपर उस हो जीवनमे भी सकोच विस्तार हो जाता है। प्रश्न २६-शुद्धव्यवहारसे जीवके कितने परिमाण है ? उत्तर-जीव जिस अन्तिम मनुष्यभवसे मोक्षको प्राप्त होता है उस मनुष्यके देहसे किञ्चित् ऊन प्रमाण है । फिर वह प्रमाण न कभी घटता है और न कभी बढता है । प्रश्न ३०-मुक्त किञ्चित् ऊन क्यो' हो जाता है ? उत्तर-इसमे दो प्रकारसे वर्णन आता है-(१) सदेह अवस्थामे भी जीवोके प्रदेश बाल, नख और कपरकी अत्यत पतली झिल्ली, जैसे चामके प्रशमे नही होते है, सो यद्यपि देह छोडकर भी इतने ही रहते है, परन्तु वे देहसे कम कहे जाते है । (२) सन्देह अवस्थामे नाक, मुख, कान आदि पोलकी जगहमे प्रात्मप्रदेश नहीं होते है, किन्तु मुक्त अवस्थामे पोल नही रहती है । वह स्थान भी भर जाता है जिससे किञ्चित् ऊन कहा है । प्रश्न ३१-निश्चयसे जीव किस परिमाया वाला है ? उत्तर-निश्चयसे जीव लोकाकाश-प्रमाण असख्यातप्रदेशी है, विस्तारकी दृष्टि व्यवहारसे है। प्रश्न ३२-'सदेहपरिमाणो' इस विशेषणसे क्या विशेषता सिद्ध हुई ? उत्तर-इस विशेषणसे आत्मा वट-बीज प्रमाण है, सर्वव्यापी है, एक सद्वित है आदि विरुद्ध प्राशयोका निराकरण हो जाता है । प्रश्न ३३-आत्मा किस नयसे किनका भोक्ता है ? उत्तर-इस विषयकी प्ररूपणा उपचार, व्यवहारनय, अशुद्धनिश्चयनय, शुद्धनिश्चयनय, परमशुद्धनिश्चयनय-इन पांच दृष्टियोसे करना चाहिय । प्रश्न ३४- उपचारसे आत्मा किसका भोक्ता है ? उत्तर-उपचारसे आत्मा इन्द्रियोके विषयभूत पदार्थों को भोगता है । प्रश्न ३५–व्यवहारनयसे आत्मा किसका भोक्ता है ? उत्तर-व्यवहारनयसे आत्मा साता असाताके उदयको भोगता है । प्रश्न ३६-अशुद्धनिश्चयनयसे आत्मा किसको भोगता है ? उत्तर–प्रशुद्धनिश्चयनयसे प्रात्मा हर्षविषाद भावको भोगता है।' प्रश्न ३७-शुद्धनिश्चयनयसे आत्मा किसको भोगता है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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