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________________ 7 गाथा ३१ - उत्तर- जिस कर्मके उदयसे अर्धनिद्रितसा सोवे, जिससे दर्शनगुणका उपयोग न हो । सके उसे प्रचलादर्शनावरणकर्म कहते है। प्रिश्न ३०–प्रचलाप्रचलादर्शनावरणकर्म किसे कहते है ? . उत्तर-जिस कर्मके उदयसे -ऐसी- निद्रा प्रावे जहां अङ्ग उपाङ्ग चले दाँत किटकिटाये, मुहसे लार बहे आदि जिससे दर्शनोपयोग न हो उसे प्रचलाप्रचलादर्शनावरणकर्म कहते है। प्रश्न ३१- स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणकर्म किसे कहते है ? । . उत्तर-जिस कर्मके उदयसे ऐसी निद्रा आवे कि निद्रामे ही उठकर कोई बड़ा काम कर आवे और जागनेपर यह मालूम भी न हो उसे स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणनामकर्म कहते है । इसके उदयमे भी जीवको दर्शन अथवा स्वसवेदन नही हो पाता । प्रश्न ३२- मोहनीयकर्म किसे कहते है? .. उत्तर- जिस कर्मके उदयसे अन्य तत्त्वोमे मोहितं हो, जाय, अपने शुद्ध स्वरूपकाध्मान न कर सके और न स्वरूपमे स्थिर हो सके उसे मोहनीयकर्म कहते है। प्रश्न ३३-मोहनीयकर्मके कितने भेद है? । उत्तर- मोहनीयकर्मके मूलमे दो भेद है-(१) दर्शनमोहनीय, (२) चारित्रमोहनीय । प्रश्न ३४-दर्शनमोहनीयके कितने भेद है ? - उत्तर–दर्शनमोहनीयके तीन भेद है-(१) मिथ्यात्व, (२) सम्यग्मिथ्यात्व और (३) सम्याकृति । प्रश्न ३५ --चारित्रमोहनीयके कितने भेद.है ? . उत्तर- चारित्रमोहनीयके २५ भेद है–१६ कप्पायवेदकमोहनीय और ६ नोऋषायवेदकमोहनीय । प्रश्न ३६- कषायवेदकमोहनीयकर्म १६. कौन-कौनसे है ? उत्तर-कषायवेदकमोहनीयकर्म १६ इस प्रकार है-(१) अनन्तानुबधीक्रोधवेदकमोहनीय, (२) अनन्तानुबधीमानवेदकमोहनीय, (३) अनन्तानुबधीमायावेदकमोहनीय, - (४) अनन्तानुबधीलोभवेदकमोहनीय, (५) अप्रत्याख्यानावरणक्रोधवेदकमोहनीय, (६) अप्रत्याख्यानावरणमानवेदकमोहनीय; (७) अप्रत्याख्यानावरणमायावेदकमोहनीय, (८) अप्रत्याख्यानावरणलोभवेदकमोहनीय, (६) प्रत्याख्यानावरणक्रोधवेदकमोहनीय, (१०) प्रत्याख्यानावरणमानवेदकमोहनीय, (११) प्रत्याख्यानावरणमायावेदकमोहनीय, (१२) प्रत्याख्यानावरणलोभवेदकमोहनीय, (१२) संज्वलनकोववेदकमोहनीय, (१४) सज्वलनमानवेदकमोहनीय, (१३) सज्वलनमायावेदकमोहनीय और (१६) सज्वलनलोभवेदकमोहनीयकर्म। - Mirry
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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