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________________ द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका अर्थ-जितने प्राकाशमे धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, कालद्रव्य, पुद्गलद्रव्य और जीवद्रव्य है वह तो लोकाकाश है और उससे परे प्रलोकाकाश कहा है। प्रश्न १-लोकाकाशका क्या प्राकार है ? उत्तर--सात पुरुप एकके पोछे एक इस प्रकार खडे हो और कमरपर हाथ रखे व पैर पसारे खडे हो । जो प्राकार उस समय वहाँ है वैसा आकार लोकाकाशका है। प्रश्न २-लोकाकाशका परिमारण कितना है ? उत्तर-सर्वलोकाकाशका परिगण ३४३ धनराजूप्रमाण है। जैसे कि उदाहरणमे उस सप्तपुरुपाकारका परिमारण करीब ३४३ घन विलस्त है । प्रश्न ३-लोकाकाणके कितने भाग है ? उत्तर-लोकाकाशके ३ भाग है- (१) अधोलोक, (२) मध्यलोक, (३) ऊर्ध्वलोक । प्रश्न ४-~-अधोलोकका परिमाण क्या है ? उत्तर- अधोलोकका परिमाण १६६ धनराजू है। जैसे दृष्टान्तमे कमरसे नीचे तक सब १६६ घन विलस्त है। प्रश्न ५-- मध्यलोकका परिमाण कितना है ? उत्तर-- मध्यलोकका परिमारण १ वर्गराजू मात्र है। प्रश्न ६- ऊर्ध्वलोकका पग्मिाण क्या है ? उत्तर-- ऊर्ध्वलोकका परिमारण ६४७ धनराजू है । जैसे दृष्टान्तमे कमरके ऊपर गर्दन तक १४७ धन विलस्त है। प्रश्न ७- लोकाकाशमे समस्त प्रदेश कितने है ? उत्तर- लोकाका शमे समस्त प्रदेश असख्यात है। प्रश्न -लोकाकाशके असख्यान प्रदेशोमे अनन्तानन्त जीव, अनन्तानन्त पुद्गल, एक धर्मद्रव्य, एक अधर्मद्रव्य, असख्यात कालद्रव्य इस प्रकार अनन्तानन्त द्रव्य कैसे समा जाते हैं ? - उत्तर- जैसे एक दीपके प्रकाशमे अनेक दीप प्रकाश समा जाते है वैसे आकाशमे व अन्य द्रव्योमे भी अनेक द्रव्य समा जानेकी योग्यता है. अत अनेक द्रव्योका लोकाकाशमे अवगाह हो जाता है। प्रश्न 8- यदि आकाशमे ऐसी अवगाहनशक्ति न मानी जावे तो क्या हानि है ? उत्तर- यदि आकाशमे अवगाहनशक्ति न हो तो लोकाकाशके एक-एक प्रदेशपर एकएक परमाणु ही ठहरेंगे अन्य परमाणु होगे ही नही, ऐसी स्थितिमे जीवके विभाव परिणाम नही हो सकते, क्योकि एक या सख्यात परमाणु विभावमे निमित्त नहीं होते।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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