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गाया २०
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जाता है।
प्रश्न ५- इस व्यवहारका प्रयोजन क्या है ? उत्तर--इस व्यवहारका प्रयोजन हेय, उपादेय वस्तुओके परिचयका व्यवहार चलाना है। प्रश्न ६-- आकाशके वर्णनसे यह प्रयोजन कैसे सिद्ध होता है ?
उत्तर-- यदि आकाशमें वस्तुओके रहनेका वर्णन न चले तो मोक्ष कहाँ, स्वर्ग कहाँ, नरक कहाँ आदि सुगमतया कैसे समझाये जा सकते ? जैसे निश्चयनयसे सहजशुद्ध चैतन्यरससे परिपूर्ण निजप्रदेशोमें ही सिद्धप्रभु विराजते है, फिर भी व्यवहारनयसे सिद्धभगवान मोक्षशिलामें स्थित है, ऐसा समझाना कैसे बनेगा ?
प्रश्न ७-- मोक्षस्थान कहाँ है ? Enjan उत्तर- निश्चयनयसे तो जिन प्रदेशोमे आत्मा कर्मरहित हुआ वही मोक्षस्थान है, व्यवहारनयसे कर्मरहित आत्माओके ऊर्ध्वगमन स्वभावके कारण लोकाग्रमें पहुच जानेसे लोकाग्रभाग मोक्षस्थान बताया गया ।
प्रश्न ८-- मनुष्य कहाँ रहता है ?
उत्तर-मनुष्यपर्याय विजातीयपर्याय होनेसे अनन्त पुद्गलोके प्रदेशोका व आत्मप्रदेशो का बद्धस्पृष्ट समुदाय है । सो वहाँ निश्चयसे प्रत्येक परमाणु अपने-अपने प्रदेशमे है और आत्मा अपने प्रदेशमे है । व्यवहारनयसे मनुष्य ढाई द्वीपके भीतर जो जहाँ है वहाँ रहता है। "प्रश्न :-यह कौनसा व्यवहार है ?
उत्तर-यह उपचरित असद्भूतव्यवहार है । पर्यायरूपसे वर्णन है, अतः व्यवहार है, सहजस्वभावमे ऐसा सद्भूत नही है, अतः असद्भूत है। दूसरेके नामसे उपचार किया है, अतउपचरित है।
प्रश्न १०-अाकाश जीव, पुद्गलोकी गति, स्थितिका भी कारण है, फिर केवल अवगाहनहेतुत्व ही प्राकाशमे क्यों कहा ?
उत्तर- आकाश गति स्थितिका कारण नहीं है, क्योकि यदि आकाश गति स्थितिका कारण हो जाता तो लोक अलोकका विभाजन नहीं रहता। जो गति करता वह असीम क्षेत्र तक गति ही करता रहता व लोकाकाशके बाहर कही स्थित भी हो जाता । इस प्रकार आकाशद्रव्यका सामान्य वर्णन करके उसका विशेष वर्णन करते है
घम्मा धम्मा कालो पुग्गल जीवा य सति जावदिये । ।
प्रायासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो ॥२०॥ अन्वय-जावदिये प्रायासे धम्मा धम्मा कालो पुग्गल जीया य सति सो लोगो तोत परदो प्रलोगुत्तो।