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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश पत्रपर्णाशुकच्छन्न-विचित्रमुकुटरजः । पार्वतेया इति ख्याता पार्वत स्तंभमाश्रिताः ॥२०॥ वंशीपत्रकृतोत्तंसाः सर्वतुकुसुमस्रजः । वशस्तंभाश्रिताश्चैते खेटा वशालया मताः ॥२१॥ महाभुजगशोभांकसदृष्टवरभूपणाः । वृक्षमूलमहास्तभमाश्रिता वार्ड्समूलकाः ॥ २२ ॥ स्ववेषकृतसचारा. स्वचिह्नकृतभूषणाः । समासेन समाख्याता निकाया खचरोद्गताः ॥ २३ ॥ इति भार्योपदेशेन ज्ञातविद्याधरान्तर.। शौरिातो निज स्थानं खेचराश्च यथायथम्" ॥२४॥
-२६ वॉ सर्ग। इन पद्योका अनुवाद प० गजाधरलालजीने, अपने भाषा हरिवंशपुराणमे,' निम्न प्रकार दिया है
_ "एकदिन समस्त विद्याधर अपनी-अपनी स्त्रियोके साथ सिद्धकूट चैत्यालयकी बदनार्थ गये। कुमार ( वसुदेव ) भी प्रियतमा मदनवेगाके साथ चल दिये ॥२॥ सिद्धकूटपर जाकर चित्र-विचित्र वेपोके धारण करनेवाले विद्याधरोने सानन्द भगवानकी पूजा की, चैत्यालयको नमस्कार किया एव अपने-अपने स्तम्भोका सहारा ले जुदे-जुदे स्थानोपर बैठ गये ॥३॥ कुमारके श्वसुर विद्युद्वेगने भी अपनी जातिके गौरिक निकायके विद्याधरोके साथ भले प्रकार भगवानकी पूजा की और अपनी गौरी-विद्याओंके स्तभका सहारा ले बैठ गये ॥४॥ कुमारको विद्याधरोकी जातिके जाननेकी उत्कठा हुई इसलिये उन्होंने उनके विपयमे
१ देखो, इस हरिवशपुराणका सन् १९१६ का छपा हुआ सस्करण, पृष्ठ २८४, २८५।