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मक्खनवालेका विज्ञापन
(एक मनोरंजक वार्तालाप ) पडितजी-कहिये सेठजी । अबकी बारका 'अनेकान्त' तो देखा होगा ? बड़ी सज-धजके साथ वीरसेवा मन्दिरसे निकला है। सेठजी-हां, कुछ देखा तो है, एक विज्ञापनसे प्रारम्भ होता है। पडितजी-कैसा विज्ञापन ? और किसका विज्ञापन ? सेठजी-मुखपृष्ठपर है न, वह किसी मक्खनवालेका विज्ञापन । पडितजी-अच्छा, तो अनेकान्तके मुखपृष्ठपर जो सुन्दर भावपूर्ण चित्र है उसे आपने किसी मक्खनवालेका विज्ञापन समझा है । तब तो आपने खूब अनेकान्त देखा है। सेठजी-क्या वह किसी मक्खनवालेका विज्ञापन नही है ? पडितजी-मालूम होता है सेठजी, व्यापारमे विज्ञापनोसे ही काम रहने के कारण, आप सदा विज्ञापनका ही स्वप्न देखा करते हैं। नही तो, बतलाइये उस चित्रमे आपने कौनसी फर्मका नाम देखा है ? उसमे तो बहुत कुछ लिखा हुआ है, कही 'मक्खन' शब्द भी लिखा देखा है ? ऊपर नीचे अमृतचन्द्रसूरि और स्वामी समन्तभद्रके दो श्लोक भी उसमें अकित हैं, उनका मक्खन वालेके विज्ञापनसे क्या सम्बध ? सेठजी--मुझे तो ठीक कुछ स्मरण है नही, मैंने तो उसपर कुछ गोपियो ( ग्वालनियो) को मथन-क्रिया करते देखकर यह समझ लिया था कि यह किसी मक्खनवालेका विज्ञापन है, और इसीसे उसपर विशेष कुछ भी ध्यान नही दिया। यदि