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________________ सन्मति-विद्या-विनोद ७३३ बादसे तुम मैले-कुचैले वस्त्र पहने हुए किसी भी स्त्री या लडकी आदिकी गोद नही चढती थी, जिसका अच्छा परिचय शामलीके उत्सवपर मिला, जबकि तुम्हे गोदीमे उठाये चलनेके लिये दादीजीने एक लडकीको योजना की थी, परन्तु तुमने उसकी गोदी चढकर नही दिया और कहा कि 'मैं अपने पैरो आप चलूंगी' और तुम हिम्मतके साथ बराबर अपने पैरो चलती रही जबतक कि तुम्हे थकी जानकर किसी स्वच्छ स्त्री या लडकीने अपनी गोद नही उठाया । मुझे बडी प्रसन्नता होती थी, जब मैं अपने यहाँके दुकानदारोसे यह सुनता था कि 'तुम्हारी विद्या इधर आई थी, हम उसे कुछ चीज देने के लिये बुलाते रहे, परन्तु वह यह कहती हुई चली गई कि "हमारे घर बहुत चीज है।" तुम्हारा खुदका यह उत्तर तुम्हारे सन्तोप, स्वाभिमान और तुम्हारी निस्पृहताका अच्छा परिचायक होता था। ___ एकबार बहन गुणमालाने चि० जयवतीकी पाछापाड धोतीमेसे तुम्हारे लिये एक छोटी धोती सवा दो गजके करीब लम्बी तैयार की, जिसके दोनो तरफ चौडी किनारी थी और जो अच्छी साफ-सुथरी धुली हुई थी। वह धोती जब तुम्हे पहनाई जाने लगी तो तुमने उसके पहननेसे इनकार किया और मेरे इस कहनेपर कि 'धोती बडी साफ सुन्दर है पहन लो' तुमने उसके स्पर्शसे अपने शरीरको अलग करते हुए साफ कह दिया "यह तो कत्तर है।" तुम्हारे इस उत्तरको सुनकर सब दङ्ग रह गये । क्योकि इतने बडे कपडेको 'कत्तर' का नाम इससे पहले किसीने नहीं सुना था। बहन गुणमाला कहने लगी-"भाई जी । तुम तो विद्याको सादा जीवन व्यतीत कराना चाहते हो, इसके कान-नाक विधवाने की भी तुम्हारी इच्छा नही है परन्तु इसके
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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