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युगवीर-निवन्धावली प्रो० चक्रवर्ती, जुगलकिशोर मुख्नार ) के मतोका उल्लेख करते हुए उनपर कुछ प्रकाश डाला गया है और समयकी पूर्वोत्तर सीमाएँ निर्धारित की गई है। साथ ही, इन आनुपङ्गिक विषयो पर विचार किया गया है कि क्या कुन्दकुन्दाचार्य (क) दिगम्बरश्वेताम्बर विभागके वाद हुए हैं ? ( ख ) भद्रवाहुके शिष्य थे ? (ग) पट खण्डागमके टीकाकार थे ? (घ) शिवकुमार राजा के समकालीन थे ? (ड) तामिल काव्य 'कुरल' के रचयिता थे ?
तीसरे विभागमे, प्रवचनसारको छोडकर, कुन्दकुन्दके नामसे नामाडित होनेवाले सभी ग्रन्थोकी चर्चा करते हुए, उपलब्ध ग्रन्थोका सक्षेप-विस्तारमे परिचय दिया गया है। अष्ट पाहुडो, रयणसार, वारसअणुवेक्खा, नियमसार, पचास्तिकायसार और समयसार ग्रन्थोका जो अलग-अलग परिचय, उनके विषयविभागको लक्ष्यमे रखते हुए, गाथाओके नम्बरोकी सूचनाके साथ दिया है वह नि सन्देह बडे ही महत्वका है और उससे उन ग्रन्थोका सारा विषय सक्षेपमे बडे ही अच्छे ढगसे सामने आ जाता है। इस परिचयके तैयार करनेमे प्रोफेसर साहबने जो परिश्रम किया है वह बहुत ही प्रशसनीय है । परिचयके बाद उक्त ग्रन्योपर विवेचनात्मक नोट्स ( Critical remarks ) भी दिये गये हैं, जो कुछ कम महत्वके नहीं हैं और विचारकी कितनी ही सामग्री प्रस्तुत करते हैं।
चौथे विभागमे, प्रवचनसारका विचार किया गया है और उसे पॉच उपविभागोमे बॉटा गया है । एकमे, प्रवचनसारके अध्ययनकी चर्चा करते हुए उसके देरसे पूर्वदेशीय भाषा-विज्ञो ( orientalists ) के हाथोमे पहुँचनेका उल्लेख है। दूसरेमे प्रवचनसारकी मूल गाथाओकी चर्चा की गई है और दोनो टीकाओपरसे गाथाओकी कमी-बेशीका जो भेद उपलब्ध होता है उसे