________________
प्रवचनसारका नया सस्करण
५७३
करनेके लिये पर्याप्त है। यह प्रस्तावना ग्रथका गौरव ख्यापित करने और जनताके ज्ञानकी वृद्धि करनेमे बहुत कुछ सहायक है । बम्बई-विश्वविद्यालयने इसकी उपयोगिताको समझते हुए इसके प्रकाशनार्थ ढाई सौ रुपये की सहायता प्रदान की है तथा ग्रथको अपने एम० ए० के कोर्समें रक्खा है, और इस तरह सम्पादक व प्रकाशक दोनोको ही सम्मानित किया है। अच्छा होता यदि इस अग्रेजी प्रस्तावनाका हिन्दी-अनुवाद भी साथमे दे दिया जाता, और इस तरह वर्तमान सस्करणकी उपयोगिताको
और भी ज्यादा बढ़ा दिया जाता अथवा इस सस्करणके दो विभाग कर दिये जाते। एकमे अग्रेजीकी प्रस्तावना और अग्रेजी अनुवादादिको रख दिया जाता और दूसरेम प्रस्तावनाका अच्छा प्रामाणिक हिन्दी-अनुवाद दे दिया जाता। साथ ही कुछ अनुक्रमणिकाओ अथवा सूचियोको भी हिन्दीका रूप देकर रख दिया जाता। इससे हिन्दी-जनताको मूल्यकी भी फिर कोई शिकायत नही रहती और इस सस्करणकी माग भी ज्यादा बढ़ जाती।
यहाँ पर मैं उक्त प्रस्तावनाका पूर्ण परिचय देनेके लिये असमर्थ हूँ-वह तो उसे देखनेसे ही सम्बन्ध रखता है । फिर भी इतना जरूर बतला देना चाहता हूँ कि इस प्रस्तावनाके छह स्थूल विभाग हैं---१. श्रीकुन्दकुन्दाचार्य, २ कुन्दकुन्दका समय, ३ कुन्दकुन्दके ग्रन्थ, ४ कुन्दकुन्दका प्रवचनसार, ५ प्रवचनसारके टीकाकार और ६ प्रवचनसारकी प्राकृत भापा । पहले विभागमे, श्रीकुन्दकुन्दाचार्यका परिचय, उनके पाँच नामोकी चर्चा, तद्विषयकविचारणा, साम्प्रदायिक कथाओकी आलोचना और उनकी गुरुपरम्पराके विचार-विमर्शको लिये हुए, दिया गया है।
दूसरे विभागमे, कुन्दकुन्दके समयके सम्बन्धमे साम्प्रदायिक धारणाके साथ चार विद्वानो (प० नाथूराम प्रेमी, डा० पाठक,