SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसारका नया सस्करण ५७१ हालमे उक्त ग्रथका नया सस्करण ( सन् १९३५ का छपा हुआ) मुझे प्राप्त हुआ है, जिसके प्रकाशनका सौभाग्य भी उक्त शास्त्रमाला और सस्थाको प्राप्त है। यह सस्करण अपने पहले सस्करणसे कितनी ही बातोमे बढा-चढा है और इसके सम्पादक है समाज के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् प्रोफेसर ए० एन० ( नेमिनाथतनय आदिनाथ ) उपाध्याय, एम० ए०, जो कि कोल्हापुरके राजाराम कॉलेजमे अर्धमागधी भापाके शिक्षक हैं, सम्पादनकलामे प्रवीण हैं और एक बड़े ही विनम्र एव प्रगतिशील इतिहासज्ञ हैं। आपके सम्पादकत्वमे ग्रथका यह सस्करण चमक उठा है । इसमे मूल गाथाओका अच्छा सशोधन हुआ है जबकि पहले सस्करणमे भापादिककी यथेष्ट जानकारी न होनेके कारण वे कितनी ही अशुद्धियोको लिये हुए छाप दी गई थी, टीकाओका भी कुछ-कुछ सशोधन हो सका है और विषयानुक्रमणिकाको भी कही-कही सुधारा गया है। इसके सिवाय जो-जो वातें अधिक है और जो प्रस्तुत सस्करणकी विशेषताएँ हैं वे निम्न प्रकार हैं - (१) प्रस्तुत सस्करणकी अच्छी सक्षिप्त विपय सूची (Contents ), अंग्रेजी मे । ( २ ) ग्रन्थ-सम्पादनादि-विपयक अग्रेजीकी भूमिका (Preface) प्रथम सस्करणकी डेढ पेजी भूमिकाके स्थान पर । (३) कुन्दकुन्द, उनके समय और उनके ग्रन्थो आदिसे सम्बन्ध रखनेवाली एक विस्तृत आलोचनात्मक प्रस्तावना ( Introduction ) अग्रेजीमे १२६ पृष्ठो पर । ( ४ ) ग्रन्थका एक अच्छा अग्रेजी अनुवाद ( English translation ) अनेक उपयोगी फुटनोट्सके साथ ३४ पृष्ठो पर। (५) ग्रन्थमे प्रयुक्त हुए पारिभापिक शब्दोकी एक अनु
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy