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गलती और गलतफहमी
रूढियाँ पनप रही हैं जिनके लिए शास्त्रका जरा भी आधार प्राप्त नही है और जो कितने ही सद्धमका स्थान रोके हुए हैं !! विद्वानोको शास्त्रीय विषयोमे जरा भी उपेक्षासे काम नही लेना चाहिये । निर्भीक होकर शास्त्रकी वातोको जनताके सामने रखना उनका खास कर्तव्य है । किसी भी लौकिक स्वार्थके वश होकर इस कर्तव्य से डिगना नही चाहिये और न सत्यपर पर्दा ही डालना चाहिये । जनताकी हाँ में हाँ मिलाना अथवा मुँहदेखी बात कहना उनका काम नही है । उन्हे तो भोली एव रूढि ग्रसित अज्ञ - जनताका पथ-प्रदर्शक होना चाहिये । यही उनके ज्ञानका सदुपयोग है |
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जो लोग रूढि भक्ति के वश होकर रूढियोको धर्मके आसन पर विठलाए हुए हैं, रूढियोके मुकावलेमे शास्त्रकी बात सुनना नहीं चाहते, शास्त्राज्ञाको ठुकराते अथवा उसकी अवहेलना करते हैं, यह उनकी वडी भूल है और उनकी ऐसी स्थिति नि सन्देह वहुत ही दयनीय है । उनको समझना चाहिये कि आगममे सम्यग्ज्ञानके बिना चारित्रको मिथ्याचारित्र और ससार - परिभ्रमणका कारण बतलाया है । अत उनका आचरण मात्र रूढियोका अनुधावन न होकर विवेककी कसौटी पर कसा हुआ होना चाहिये और इसके लिये उन्हे अपने हृदयको सदा ही शास्त्रीय चर्चाओके लिए खुला रखना चाहिये और जो बात युक्ति तथा आगमसे ठीक जँचे उसके मानने और उसके अनुसार अपने आचारविचारको परिवर्तित करनेमे आनाकानी न करनी चाहिये, तभी वे उन्नति मार्गपर ठीक तौर पर अग्रसर हो सकेगे और तभी धर्म-साधनाका यथार्थ फल प्राप्त कर सकेगे ।
- अनेकान्त वर्ष ६, किरण १०-११, ८-२-१९४४