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पूर्वापर-विरोध नहीं
:१२: सत्यसन्देशके अक २३ ( सन् १९३६ ) मे 'पूर्वापर-विरोध' शीर्षकको लिये हुए एक छोटा सा (प्राय एक कालमका) नोट भाई श्रीभगवानदीनजीने प्रकाशित कराया है। यह नोट मेरे उस लेखसे सम्बन्ध रखता है जो 'स्वार्थसे निवृत्ति कैसी ?' शीर्पकके साथ उक्त अकके पूर्ववर्ती अकमे प्रकट हुआ था। उस लेखको देखने-पढनेपर भाई भगवादीनजीके चित्तकी जो दशा हुई अथवा उनके हृदयमे जो-जो विचार उत्पन्न हुए, उनका कुछ परिचय देते हुए आपने इस नोटमें अपनी जाँच-द्वारा यह सूचित किया है कि मेरे उक्त लेखमे '६० फीसदी तो प० दरबारीलालजीके लेखका मडन और समर्थन है, २० फीसदी विद्वत्तापूर्ण उठाई हुई शकाएँ हैं जिनके लिये खडन या विरोधात्मक शब्दका किसी प्रकार प्रयोग नही किया जा सकता और शेष २० फीसदी आक्षेप तथा समाजको भडकानेवाली चिनगारियाँ हैं।' साथ ही यह भी लिखा है कि यदि मैं पं० दरबारीलालजी को ठीक-ठीक समझा हूँ तो विना झिझकके कह सकता हूँ कि साठ फीसदीके नीचे वे खुशीसे अपने हस्ताक्षर कर देंगे। अर्थात् उक्त लेखके ६० फीसदी अशको वे बिलकुल ठीक मान लेंगे और शकाओंके २० फीसदी अशको अपने विरोघमे नही समझेगे-हो सकेगा तो उनका उचित उत्तर प्रदान करेंगे और इस तरह मेरे लेखका जो अथवा जिस रूपमे उत्तर प० दरबारीलालजीकी तरफसे होना चाहिये उसकी आपने कुछ रूपरेखा समझाई है। अस्तु, प० दरबारीलालजीका उत्तर उक्त नोटके साथ ही उसी