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युगवीर-निवन्धावली भरा हुआ है, किसी जोशमे आकर लिखा गया है और इसलिये समीचानताके साथ उसका कोई घनिष्ठ सम्बन्ध मालूम नही होता । लेखकी 'कमसे कम लेने और अधिकसे अधिक देने रूप' साधु-लक्षणवाली बात भी आपत्तिके योग्य है, जिसपर यथावकाश फिर किसी समय प्रकाश डाला जायगा।
- जैनदर्शन, वर्ष ४, ता० १-१२-१६३६