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' उपासना-विषयक समाधान
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अशुद्ध पाठोका उच्चारण करते थे या उनके पूजा-पाठोका भाव घटिया होता था ? यदि ऐसा कुछ नही लिखा तो फिर इन श्लोकोके पेश करनेसे नतीजा ? मेरा आक्षेप कोई गाने-बजानेपर नही था, बल्कि अर्थावबोधके-द्वारा परमात्माके गुणोमे अनुराग न बढानेपर अथवा अर्थका अनर्थ करनेवाले या स्तुतिको निन्दा बना देनेवाले अशुद्ध पाठोके उच्चारणपर था, जिसका उक्त श्लोकोसे कोई निराकरण नही होता। खेद है जिन लोगोको इतनी भी खबर नही पडती कि आक्षेप किधर है और हम उसका विरोध किधरसे कर रहे हैं वे भी ऐसे लेखोपर आपत्ति करने बैठ जाते हैं जो बहुत कुछ जाँच-तोलके बाद लिखे होते हैं। ___रही 'बुद्धओ' शब्दके प्रयोगकी बात, बडजात्याजीको शिकायत है कि 'स्वर-तालमे मस्त होनेवालोके लिए' इस शब्दका व्यवहार ठीक नहीं हुआ वह असभ्यताका द्योतक है परन्तु मैं कहता हूँ कि यह शब्द सभी स्वर-तालमे मस्त होनेवालेके लिए व्यवहृत नही हुआ, बल्कि उन स्वर-तालमै मस्त होनेवालोके लिए, व्यवहृत किया गया है 'जो परमात्माके गुणोमे अनुरक्त न होकर बिना समझे-बूझे अनाप-सनाप ऐसे अशुद्ध पाठोका उच्चारण करते हुए देखे गये हैं जिनसे अर्थका बिलकुल ही अनर्थ हो जाता है अथवा स्तुतिके स्थानमे भगवान्की निन्दा ठहरती है और इसीसे 'स्वर-तालमे मस्त' से पहले 'उन' शब्दका प्रयोग किया गया था जिसे बडजात्याजीने अपने लेखमे न
१. एक वार एक पूजक महाशय भगवान्की स्तुति पढते हुए उन्हें कह रहे थे-'सव महिमामुक्त ( युक्त) विकल्पयुक्त (मुक्त ) । देखिए कितनी बढ़िया अथवा सुन्दर स्तुति है ।। इस तरहके सैकडो अनुभूत उदाहरण पेश किये जा सकते हैं।
किये जा सकते पाते है ।। इस तरह के रक्त)। देखिए