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वियाह क्षेत्र-प्रकाश
१६५ उनकी योग्यतासे काम लेनेके लिये सदा तैयार रहते थे। और यह उन्ही जैसे उदारहृदय योजकोके उपदेशादिका परिणाम हे जो प्राचीन-कालमे कितनी ही म्लेच्छजातियोके लोग इस भारतवर्पमे आए और यहाँके जैन, बौद्ध, अथवा हिन्दू धर्मोमे दीक्षित होकर आर्य जनतामे परिणत हो गये। और इतने मखलूत हुए ( मिल गये ) कि आज उनके वशके पूर्व पुरुपोका पता चलाना भी मुश्किल हो रहा है। समालोचकजीको भारतके प्राचीन इतिहासका यदि कुछ भी पता होता तो वे एक म्लेच्छकन्याके विवाहपर इतना न चौंकते और न सत्यपर पर्दा डालनेकी जघन्य चेष्टा ही करते । अस्तुः।
इन सब कथनसे साफ जाहिर होता है कि जिस जराका वसुदेवके साथ विवाह हुआ, जिसके पुत्र जरत्कुमारने राजपाट छोडकर जैन मुनि-दीक्षा तक धारण की और जिसकी सन्ततिमे होनेवाले जितशत्रु राजासे भगवान महावीरकी बुआ व्याही गई वह एक म्लेच्छ-राजाकी कन्या थी, भील भी म्लेच्छोकी एक जाति होनेसे वह भील कन्या भी हो सकती है, परन्तु वह म्लेच्छखडके किसी म्लेच्छ-राजाकी कन्या नहीं थी किन्तु आर्यखण्डोद्भव म्लेच्छ-राजाकी कन्या थी, जो चम्पापुरीके पासके इलाकेमे रहता था। म्लेच्छ-खडोमे आर्योंका उद्भव नही। म्लेच्छोका सर्व सामान्याचार वही हिंसा करना और मासभक्षणादिक है। म्लेच्छखडोके म्लेच्छ भी उस आचारसे खाली नही है, वे खास तौरपर धर्म-कर्मसे वहिभूत है और उनका क्षेत्र धर्म-कर्मके अयोग्य माना गया है वहाँ सज्जातिका उत्पाद भी प्राय नही वनता। म्लेच्छोमे नीचगोत्रादिकका उदय भी बतलाया गया है और इससे यह नही कहा जा सकता कि वे उच्चजातिके होते