________________
१४६
युगवीर निवन्धावली
तक कल्पना करनेके लिये मजबूर हुये है कि यदि वह कन्या ( जरा ) भीलोने ही वसुदेवको दी हो तो वह जरूर किसी दूसरी जातिके राजाकी लडकी होगी और भील उसे छीन लाये होगे। यथा -
" भील लोग जगलोमे रहने वाले जिनके विषयमे शास्त्रोमे लिखा है कि वे बडे काले, बदसूरत डरावने होते है । तो वसुदेवजी ऐसे पराक्रमी और सुन्दर कामदेवके समान जिनके रूपके सामने ' देवाङ्गनाये भी लज्जित हो जावे, ऐसी राजाओकी अनेक रूपवती और गुणवती कन्याओके साथ विवाह किया । उनको क्या जरूरत थी कि ऐसे बदसूरत भीलकी लडकीके साथ शादी करते। हाँ, यह जरूर हो सकता है कि भील किसी राजाकी लडकीको छीन लाये हो और उसे सुन्दर खूबसूरत समझ कर वसुदेवको दे दी हो। इससे सिद्ध है कि वह भीलकी कन्या तो थी नही ।"
परन्तु सभी भील वडे काले, वदसूरत और डरावने होते हैं, यह कौनसे शास्त्रमे लिखा है और कहाँसे आपने यह नियम निर्धारित किया है कि भीलोकी सभी कन्याएँ काली, बदसूरत तथा डरावनी ही होती है ? क्या रूप और कुलके साथ कोई अविनाभाव सम्बन्ध है ? हम तो यह देखते हैं कि अच्छे-अच्छे उच्च कुलोमे बदसूरत भी पैदा होते हैं और नीचातिनीच कुलो मे खूबसूरत वच्चे भी जन्म लेते हैं। कुलका सुभग, दुर्भग और सौभाग्यके साथ कोई नियम नही है। इसी बातको श्रीजिनसेनाचार्यने वसुदेवके मुखसे, रोहिणीके स्वयवरके अवसरपर कहलाया है । यथा -
कश्चिन्महाकुलीनोऽपि दुर्भगः सुभगोऽपरः । कुलसौभाग्ययोर्नेह प्रतिवन्धोऽस्ति कश्चन ।। ५५ ॥
हरिवंशपुराण ३१वॉ सर्ग।