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विवाह - क्षेत्र प्रकाश
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इसलिये उनके 'भीलोका राजा' शब्दोंके छलको लेकर समालोचकजीने जो आपत्ति की है वह बिलकुल निसार है । प० गजाधरलालजी तो अपने उक्त लेखमे स्वय स्वीकार करते हैं कि उस समय म्लेच्छ किंवा भीलो आदिकी कन्यासे भी विवाह होता था । यथा
"उस समय राजा लोग यद्यपि म्लेच्छ किंवा भील आदिकी कन्याओसे भी पाणिग्रहण कर लेते थे तथापि उनके समान स्वय म्लेच्छ तथा धर्म-कर्मसे विमुख न वन जाते थे, किन्तु उन कन्याओ - को अपने पथपर ले आते थे । और वे प्राय पति द्वारा स्वीकृत धर्मका ही पालन करती थी । इसलिये वसुदेवने जो जरा आदि म्लेच्छ कन्याओके साथ विवाह किया था उसमे उनसे धार्मिक रीति-रिवाजोमे जरा भी फर्क न पडा था । "
इस उल्लेख द्वारा प० गजाधरलालजीने जराको साफ तौरसे 'म्लेच्छ कन्या' भी स्वीकार किया है और उसके वाद 'आदि' शब्दका प्रयोग करके यह भी घोषित किया है कि वसुदेवने 'जरा ' के सिवाय और भी म्लेच्छ कन्याओसे विवाह किया था । समालोचकजीके पास यदि लज्जादेवी हो तो उन्हें, इन सव उल्लेखोको देखकर, उसके आँचलमे अपना मुँह छुपा लेना चाहिये और फिर कभी यह दिखलाने का साहस न करना चाहिये कि पडितजी - के उक्त शब्दोका वाच्य 'भील' राजासे भिन्न कोई 'आर्य'' राजा है ।
मालूम होता है समालोचकजीको इस खयालने बडा परेशान किया है कि भील लोग बडे काले, 'डरावने और बदसूरत होते हैं, उनकी कन्यासे 'वसुदेव' जैसे रूपवान और अनेक रूपवती 1 स्त्रियोके पति पुरुष क्यों विवाह करते । और इसीसे आप यहाँ