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________________ १४० युगवीर - निबन्धावली 'उसे भीलोका राजा' सूचित करते हैं । वह राजा म्लेच्छखण्डका राजा हो या आर्यखण्डोद्भव म्लेच्छराजा, और चाहे उसे भीलोका राजा कहिये, परन्तु इममे सन्देह नही कि वह आर्य तथा उच्चजातिका मनुष्य नही था । और इसलिये उसे अनार्य तथा म्लेच्छ कहना कुछ भी अनुचित नही होगा । म्लेच्छोका आचार आमतौरपर हिंसामे रति, मासभक्षणमे प्रीति और जबरदस्ती दूसरोकी धनसम्पत्तिका हरना, इत्यादिक होता है, जैसा कि श्रीजिनसेनाचार्य प्रणीत आदिपुराणके निम्नलिखित वाक्यसे प्रकट हैं - म्लेच्छाचारो हि हिंसायां रतिर्मांसाशनेऽपि च । बलात्परस्वहरणं निर्धूतत्वमिति स्मृतम् ॥ ४२-१८४ ॥ वसुदेवजीने, यह सब कुछ जानते हुए भी, बिना किसी झिझक और रुकावटके बडी खुशीके साथ इस म्लेच्छराजाकी उक्त कन्या से विवाह किया और उनका यह विवाह भी उस समय कुछ अनुचित नही समझा गया । बल्कि उस समय और उससे पहले भी इस प्रकारके विवाहोका आम दस्तूर था । अच्छेअच्छे प्रतिष्ठित, उच्चकुलीन और उत्तमोत्तम पुरुषोंने म्लेच्छ राजाओकी कन्याओसे विवाह किया, जिनके उदाहरणोसे जैनसाहित्य परिपूर्ण है । " उदाहरणके इस अशसे प्रकट है कि लेखकने जितनी बार अपनी ओरसे जराके पिताका उल्लेख किया है वह " म्लेच्छराजा" पदके द्वारा किया है, जिसमे ' म्लेच्छ' विशेषण और 'राजा' विशेष्य है ( म्लेच्छ राजा म्लेक्छराजा ) और उसका अर्थ होता है ' म्लेच्छ-जाति - विशिष्ट - राजा – अर्थात् म्लेच्छ जातिका राजा, वह राजा जिसकी जाति म्लेच्छ है, न कि वह राजा जो
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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