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________________ विवाह क्षेत्र- प्रकाश १३९ अग्रवाल जैसी समृद्ध जाति भी इन्ही कौटुम्बिक विवाहोका परिणाम है । उसके आदिपुरुष राजा अग्रसेनके सगे पोते पोतियो का — अथवा यो कहिये कि उसके एक पुत्रकी सततिका दूसरे पुत्रकी संतति के साथ - आपसमें विवाह हुआ था । आजकल भी अग्रवाल अग्रवालोमे ही विवाह करके अपने एक ही वशमे विवाहकी प्रथाको चरितार्थ कर रहे हैं और राजा अग्रसेनकी दृष्टिसे सव अग्रवाल उन्हीके एक गोत्री हैं । समालोचकजीने विरोधके लिये जिन प्रमाणोको उपस्थित किया था उनमेसे एक भी विरोध के लिए स्थिर नही रह सका, प्रत्युत इसके सभी लेखकके कथन की अनुकूलतामे परिणत हो गये और इस बात को जतला गये कि समालोचकजी सत्यपर पर्दा डालनेकी धुन समालोचनाकी हदसे कितने वाहर निकल गये - समालोचकके कर्तव्यसे कितने गिर गये –— उन्होने सत्यको छिपाने तथा असलियतपर पर्दा डालने की कितनी कोशिश की, परन्तु फिर भी वे उसमें सफल नही हो सके। साथ ही, उनके शास्त्र - ज्ञान और भ - विधानकी भी सारी कलई खुल गई । अस्तु । यह तो हुई उदाहरणके प्रथम अश – 'देवकीसे विवाह'के आक्षेपोकी वात, अव उदाहरणके दूसरे अश – 'जरासे विवाह' को लीजिये । - म्लेच्छोंसे विवाह लेखकने लिखा था कि - "जरा किसी म्लेच्छराजाकी कन्या थी, जिसने गंगा-तटपर वसुदेवजीको परिभ्रमण करते हुए देखकर उनके साथ अपनी इस कन्याका पाणिग्रहण कर दिया था । प० दौलतरामजीने, अपने हरिवशपुराणमे, इस राजाको 'म्लेच्छखण्डका राजा' वतलाया है और प० गजाधरलालजी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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