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________________ स्याद्वादाभिनन्दनम् ! [१] निशा में वशो दिशा के बीच फल जाता है जब तम-सोम, उसे लयकर ज्यो दिव्य प्रकाश दिवाकर द्वारा करता व्योम । [२] तथा मिथ्यात्व प्रस्त जब विश्व जैनदर्शन तब निर्मल ज्योति तत्व को करने सत्पहिचान- दिखाता स्यावाद के जोर । वस्तुतः हो जाता असमर्थ तत्वविद् होते पुलकित देख दूर करने तद् भ्रांति महान- विवश हो जैसे चन्द्र चकोर । [४] वस्तु विषयक गुण धर्म अनेक, एक कर मुख्य, शेष कर गौणन होता स्याद्वाद, तो तस्व कथन पय यह दिखलाता कौन ? [५] जनों की पारस्परिक बिन्द्ध-- जयतु ! जिनमुल निर्गत, अवदात दृष्टियों को रेकर बहुमान- परिष्कृत स्थावाद मय बैन । समन्वय द्वार ग्रहण कर कौन विश्व में मंगल मय हो दिव्य बड़ाता अनेकांत की शान ? जैन दर्शन की यह प्रिय दैन ! - नाथूराम डोंगरीय जैन
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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