SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना मैने प० नाथूरामजी डोंगरीय . न्यायतीर्थ इन्दौर रचित "समयसार वैभव" ग्रन्थ की पांडुलिपि देखी। यह भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य विरचित 'समयप्राभूत' नामक ग्रन्थ का भावानुवाद है । प्रथम तो किसी महान ग्रन्थ-कर्ता के अभिप्राय को समझना और फिर उसको छन्दोबद्ध पद्यमयी भाषा मे प्रकट करना----यह एक अत्यन्त कठिन कार्य है। परन्तु, समझा जा सकता है कि पंडितजी का इस दिशा में प्रयत्न सफल हुआ है। आपका परिश्रम सराहनीय है । प्रस्तुत रचना जैन अध्यात्म तत्व के समझने में बहुत कुछ सहायक होगी । यह ग्रन्थ अधिकाधिक प्रचार में आवे, ऐसी शुभ कामना है । जैन उदासीनाश्रम, तुकोगंज, इन्दौर (म. प्र. वंशीधरजेन दि. ८-७-१९७० [स्याद्वादवारिधि, जनसिद्धांतमहोदधि, न्यायालंकार]
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy