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जीवाजीवाधिकार
शुद्ध नय का प्रयोजन जीव मात्र में विद्यमान है शक्ति अमित अव्यक्त महान । यदि पुरुषार्थ करें बन जायें हम सब स्वयं सिद्ध भगवान । इस स्वशक्ति का बोध कराना ही अभीष्ट है यहाँ प्रवीण ! यत्प्रसाद अमरत्व प्राप्त कर पात्म बन सुस्थिर स्वाधीन ।
(७ ) व्यवहार एव शुद्ध नय मे दृष्टि भेद एक अखंड वस्तु में नाना गुण पर्यय का कर निर्धार । भेद रूप प्रतिपादन करता वह नय कहलाता व्यवहार । गुरु, इस नय ज्ञानी के करते दर्शन, ज्ञान, चरण, व्यपदेश । शुद्ध दृष्टि ज्ञायक हो पाती, दर्शनादि का भेद न लेश।
व्यवहार नय की उपयोगिता ज्यों अनार्य समझें न बात-बिन लिये म्लेक्ष भाषा प्राधार, त्यों व्यवहार बिना नहि समझें जन परमार्थ तत्व अविकार, एक शुद्ध ज्ञायक स्वभाव की जिन्हें भ्रांतिवश नहि पहिचान, उन्हें ज्ञान दर्शन प्रभेद कर श्री गुरु दें वर तत्वज्ञान । (6/3) अमित असीम, अनंत । अव्यक्त-अप्रकट । यत्प्रसाद-जिसके प्रसाद से । अमरत्वअमरता । सुस्थिर-परिभ्रमण-रहित (7) निर्धार-निश्चय । व्यपदेश-गुण-भेद कथन।
शुद्धवृष्टि-शुखनय (8) अनार्य-प्लेक्ष । परमार्थ-शुध्वात्म ।