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ज्ञानी पर को जानता है। किंतु
कर्ता नही. ज्ञानी रागादि को जानकर भी
रागी नही बनता. ज्ञानी कर्मफलो का भी कर्ता नही. पुद्गल कर्म भी जीव के भावो
का कर्त्ता नही. जीव-कर्म मे निमित्त-नैमित्तिक
सबध. निश्चय से जीव-पुद्गल मे कर्ता
कर्म सबध नही. जीव निश्चय मे अपने भावो का
कर्ता है. उसके विकारी भावो मे कर्मोदय
निमित्त है. उक्त कथन का दृष्टात जीव कर्मों का कर्ता-भोक्ता __ व्यवहार से है जीव कर्मों का कर्ता क्यो नही है? द्विक्रियावादी मिथ्या दृष्टि है। निश्चय से कर्ता, कर्म, क्रिया का
स्वरूप मिथ्यात्वादि जीव के है या
प्रश्नोत्तर मात्मा किन विकार भावों का
कर्ता है। प्रात्मा के विकारभावो का परि
णाम जीव अज्ञान से ही कर्मों का
कर्ता है. सम्यक्दृष्टि जीव कर्मों का कर्ता
मही. मशान से कर्मोत्पत्ति किस
प्रकार है? प्रशानभाव ही कर्मकर्ता सिद्ध
होता है. प्रज्ञानभाव का परिणाम प्रज्ञानमलक कर्त्त त्व भाव कब
नष्ट होता है? शका-समाधान जीव पर द्रव्य का कर्ता उपचार
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पुद्गल के ?
मिथ्यात्वादि भाव जीव के है
और मिथ्यात्व कर्म प्रकृति पौद्गलिक हैं इसका दृष्टात मिथ्यात्वादि जीव और पुद्गल
दोनो मे उत्पन्न होते हैं.
वस्तुत पर कर्तृत्व मानने मे हानि ५१ जीव वस्तुत. अपनी योग और __ उपयोग शक्तियों का कर्ता है ५१ ज्ञानी कर्मों को पौद्गलिक ही
जानता है अज्ञानी भी परद्रव्य या भाव का कर्ता न हाकर अपने विकार
भावो का ही कर्ता है. पर द्रव्य या भाव का कर्तत्व
निषिद्ध है. निष्कर्ष
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