SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ m २० mr निश्चय प्रत्याख्यान का दृष्टांत १९ शानी की मोहज भाव मे निर्ममता १६ अपना प्रौर पराया (शानी का मात्म-चिंतन) स्वरूप चिंतन से प्रात्म लाभ परात्मवादियो की प्रात्म विभ्रातिया परात्मवाद (जडवाद) केवल भ्रम है उल्लिखित भ्रमो का निराकरण व्यवहार से रागादिभाव जीव Mmmmm mr m mm २२ वर्ग वर्गणा प्रादि भी प्रात्मा नहीं ३१ योग, बध, उदय मार्गणा भी प्रात्मा नही. गुणस्थान भी प्रात्मा के स्वभाव नही. शका-समाधान वर्णादिक जीव ने क्यो नही है, दृष्टात व्यवहार से जीव मूर्तिक है व्यवहार से सयोगज भाव जीव के है ३४ व्यवहार-निश्चय प्रवृत्ति के कारण ३५ जीव और पुद्गल भिन्न क्यो है ? ३५ ससारी वस्तुत मूर्तिक नही ३५ ससारी को रूपी मानने में हानियाँ ३६ जीवस्थान निश्चय से जीव नही. जीव स्थान जड स्वभाव है 'सूक्ष्म-बादर' जीवसज्ञा व्यवहार है ३७ वास्तविकता क्या है ? कर्ता-कर्म अधिकार प्रात्मा मे क्रोधादि भाव क्यों होते है ? क्रोधादि भावो का परिणाम क्या Y mm MY or or o ३७ उक्त कथन का समर्थन रागादि जीव के स्वभाव नहीं । व्यवहारनय मिथ्या नही २३ नयो की विरुद्ध दृष्टियो का समन्वय. निश्चयैकात से हानियाँ २५ किसका कौनसा नय आश्रयणीय है ? २६ निश्चय निरपेक्ष व्यवहार-व्यव हाराभान है. प्रसंगोपात्त हेयापादेय विवेचन २७ हेयोपादेय का निर्णय व्यवहारनय किसे हेय व किसे __उपादेय है? २६ व्यवहार निश्चय का दृष्टात शुद्धनय से आत्म तत्व का निरूपण ३० मात्मा क्या नही है? विकारीभाव मात्मा के होकर भी स्वभाव नहीं. ३१ २४ बध से निवृत्ति कब होती है? भेदविज्ञान से बध की निवृत्ति भेदज्ञानी की भावना से प्रास्रव का प्रभाव ज्ञानी के प्रास्रव सबधी विचार वास्तविक ज्ञानी कोन ?
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy