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जादी सिद्धो वीरो तहिवसे गौतमो परमगाणी । जादो तस्सि सिद्धे, सुधम्मसामी तदो जादो ॥१४७६ ॥ सम्हि कद कम्मणासे, जबसामिति केवली जादो।
वम्हि सिद्धि पवणे केवलियो गति प्रणबद्धा ॥१४७७॥ साराश यह कि वीरनाथ के निर्वाण होनेपर उसी दिन गौतम परमज्ञानी (केवलज्ञानी) हुए। उनके निर्वाण होने पर सुधर्मस्वामी (संघ नायक) हुए तथा परमज्ञानी हुए। जब वे फर्म नाशकर निर्वाण गए तब जंबूस्वामी (संघ नायक) केवली हुए। इस तरह पट्टपरपरा से अनुबद्ध केवली हुए। इसके बाद पट्टाचार्यों में अनुबद्ध केवली नहीं हुए। पर अननुबद्ध केवली और भी हुए हैं यह नीचे पद्यों से ध्वनित है। देखिये--- आगे तिलोयणपणती मे निम्न पच हैं :--
वादि वासाणि, गौतमपहुंदीण गाणवंताणं । धम्मपवट्टण कालं, परिमाणं पिण्डहवेण ॥१४७८॥ कुंडलगिरिम्म चरिमो, केवलणाणीसु सिरिधरो सिहो।
चारण रिसीसु चरिमो, सुपासचंदामिधाणोय ॥१४७६॥ इसका अर्थ यह है कि भगवान् श्री महावीर के पश्चात बासठ वर्ष गौतमारि ज्ञानियों (केवल ज्ञानियों) का समुदाय रूप से धर्म प्रवर्तन काल है। किन्तु केवल शानियों में अन्तिम केवली श्री "श्रीधर" कुडरगिरि से निर्वाण को प्राप्त हुए । तथा चारण ऋद्धि के धारण करनेवाले ऋषीश्वरो में अन्तिम ऋषीश्वर सुपासचन्द्र (सुपावचन्द्र) नाम
इस प्रमाण से ३ केवली ही नहीं हुए। भगवान् के संघ के अधिनायक मुख्याचार्य जो २ पट्ट पर बैठे उनमें ३ प्राचार्य केवली हुए हैं । इनके सिवाय जो पट्टासीन नहीं हुए ऐसे अनेक केवलो थे उनमें अन्तिम केवली श्री श्रीधर स्वामी निर्वाण को प्राप्त
टिप्पणी :-- कुंडलाकार पर्वत कुंडरगिरि कुण्डलपुर क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध मध्यप्रदेश
के दमोह जिले में दमोह से २० मीलं पर ५६ जिनालयों सहित सुरम्य क्षेत्र है यहां पर श्री १०८ श्रीधर केवली के प्राचीन चरण भी स्थापित हैं।