SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्व विशुद्ध जानाधिकार ( ३६५/२ ) अन्य व्यवहार कर्तृत्व का स्पष्टीकरण निर्मित किया यथा गृह मैने अथवा किया दुग्ध का पान । विष त्यागा कंटक निकलाया आदि सर्व व्यवहार विधान । मै पर का ज्ञाता दृष्टा हूँ यह कथनी भी है व्यवहार । निश्चय से चेतन है निज का ही बस जानन देखन हार । ( ३६६-३६७ ) निश्चय से पर के कर्तृत्व का स्पष्टीकरण दर्शन ज्ञान चरित्र नहीं है जड़ इन्द्रिय विषयों में लेश । इनका धात क्या करें चेतन,इसका जब उनमें न प्रवेश । जड़ कर्मों में भी ज्ञानादिक गुण करते है नहीं प्रवेश । अतः जीव जड़ कर्मों का भी घात करेगा कैसे लेश ? ( ३६८-३६६ ) जड़ काया में भी रत्नत्रय होते नहीं रंच गतिमान् । अतः जीव काया का भी नहिं घात कर सके निश्चय जान । अज्ञानी प्रज्ञान भाव से करता रत्नत्रय का लास । पुद्गलादि पर द्रव्यों का वह कर सकता नहि रंच विनाश ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy