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________________ १३९ समयसार - वैभव ( ३२६ ) जीव भी पुद्गल में विकार उत्पन्न नही करता त्यों यदि पुद्गल में हम करते मिथ्यात्वादि मलिन परिणाम । तब पुद्गल मिथ्यात्वी ठहरे और जीव निर्दोष ललाम । बंधन तब पुद्गल को होगा, बंधन से होगा संसार । पुद्गल हो सुख दुख भोगेगा -जीव सिद्ध होगा श्रविकार । ( ३३० ) पुद्गल कर्म की परिणति पुद्गल कृत ही है यदि जड़-चेतन मिल पुद्गल में मिथ्या भ्रांति करें उत्पन्न । तत्फल प्राप्ति दोष दोनों को तब प्रवश्य होगा निष्पन्न | फिर मिथ्यात्वादिक से होगा पुद्गल को निश्चित ही बंध । यह सिद्धांत विरुद्ध मान्यता इष्ट नहीं हो सकती, ग्रंथ ! ( ३३१ / १ ) प्रकृति-जीव मिल पुद्गल में यदि नहि करते मिथ्यात्वोत्पन्न । तब मिथ्यात्व रूप पुद्गल को परणति स्वतः हुई निष्पन्न । इससे सिद्ध हुआ - पुद्गल में होतीं जो परणतियां म्लान ये पुद्गल के ही विकार हैं--मात्र निमित्त चेतना म्लान । -
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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