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________________ नर्जराधिकार ( १९५) दृष्टांत द्वारा ज्ञान सामर्थ्य प्रदर्शन विष भक्षण कर भी कुमृत्यु से ज्यों बच जाए वैद्य प्रवीण । त्यों उदयागत कर्म फलों में ज्ञानी रहता बंध विहीन । भक्षण पूर्व नष्ट कर देता वैद्य मंत्र से ज्यों विष शक्ति । त्यों ज्ञानी नव बंध न करता सुख दुख भोग बिना प्रासक्ति । दृष्टांत द्वारा वैराग्य मामर्थ्य प्रदर्शन । यथा व्याधि के प्रतीकार हित करके भी जन मदिरा पानमत्त न होता, यतः पान से पूर्व मिलाता औषधिजान । त्यों यदि अरतिभाव रत रह कर करना पड़ जाए उपभोग । नूतन कर्म न बाँध, पुरातन का करता वह सहज बियोग । ( १९७/१ ) वैराग्य द्वारा निर्जरा का समर्थन उदासीन रह सेवन कर भी सेवक नहि बनता समदृष्टि । नहि सेवन कर भी रागोजन करता सतत बंध की सृष्टि । यथा सेवकों द्वारा स्वामी हित हो जो आदान प्रदान । स्वामी ही तल्लाभ हानिमय प्रतिफल पाता नियम प्रमाण ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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