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समयसार-बैमा
संवराधिकार
( १८१ ) सवर का लक्षण, कारण एवं भेद विज्ञान निदर्शन प्रास्त्रव का रुकना संवर है, उसका हेतु भेद विज्ञान । प्रात्म तत्व उपयोगमयी है, क्रोधादिक से भिन्न महान । दर्शन ज्ञानमयी होता है चेतन का उपयोग, प्रवीण ! उससे भिन्न क्रोध मानादिक है कषाय की वृत्ति मलीन ।
( १८२ ) जीब का उपयोग कर्म नोकर्म से भी भिन्न है न हि ज्ञानावरणादि कर्ममय परिणमता उपयोग, निदान । शरीरादि नोकर्मों से भी उसकी सत्ता भिन्न महान । नहि उपयोग मध्य करते है कर्म और नोकर्म प्रवेश। दोनों ही जड़रूप, कभी चैतन्यमयी परिणमें न लेश ।
उल्लिखित भेद विज्ञान से संवर का लाभ एवं भेवज्ञान से हो जब जीव स्वस्थ, मिथ्यात्व विहीन । उसी समय शद्धात्म तत्व का दर्शन होता उसे नवीन । शुद्ध भावरत बन करता नहि फिर किंचित् रागादि मलीन । जीवन में कर्मालव इससे हो जाता है स्वयं विलीन । (१८३) विलीन-गायब ।