________________
टिप्पणियाँ
जीवित सर्प जल रहा है ?"-कमठ ने विरोध किया। पार्श्वनाथ जी ने अपने नौकरके द्वारा धूनी में से एक लक्कड़ निकलवाया। उसमें से तड़पता हुआ साँप निकला । पाश्वनाथ जी ने उसे नवकार मंत्र सुनाया । साँप मरकर धरण नाम का इन्द्र हुआ। इससे कठ का बड़ा अपमान हुआ। कठ भी मरकर मेघ. माली नाम का देव हुआ। पार्श्वनाथ जी ने दीक्षा ली। वे एक दिन ध्यान में थे। मेघमाली ने उन्हें देखा । वह पूर्व का वैर याद कर उन पर मूसलधार पानी बरसाने लगा। उनके चारों तरफ पानी भर गया। वे गले तक डूब गए । धरणेन्द्र को यह बात मालूम हुई। उसने आकर पार्श्वनाथ जी को एक सोने के कमल पर चढ़ा लिया और उन पर फनकी छाया कर दी। फिर उसने मेघमाली को धमकाया। वह डरकर पार्श्वनाथ प्रभु के चरणों में पड़ा। इस तरह कमठ ने प्रभु के शरीर को सताया और धरणेन्द्र ने प्रभु के शरीर की रक्षा की, परन्तु पार्श्वनाथ जी न कमठ से नाराज हुए और न धरणेन्द्र पर प्रसन्न हुए। उनके मन में दोनों के लिए समान भाव थे।
३-वहत्तर कलाएँ ये कलाएँ भगवान आदिनाथने अपने बड़े पुत्र भरतको सिखलाई थीं १. लेख-लिखनेकी कलाः सब तरहकी लिपियों में लिख सकना खोदकर, सीकर, चुनकर, छेदकर, भेदकर, जलाकर और संक्रमण करके एक दूसरेमें मिलाकर अक्षर बनाना मालिक-नौकर, पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य, पति-पत्नी,शत्रु-मित्र वगै. रहके साथ पत्रव्यवहारकी शैली,और लिपिके गुण दोपका ज्ञान, २. गणित, ३. रूप-मिट्टी, पत्थर, सोना, मणि, वन और