________________
हिणियाँ
१-करण सत्तरी .४२ पिंडविशुद्धि-साधु नीचे लिखे गये ४२ दोष टालकर आहार-पानी लें।
१-धातृपिंड (गृहस्थके बालकोंको खिलाकर आहार लेना), २-दूतीपिंड (विदेशके समाचार बताकर गोचरी लेना), ३निमित्तपिंड (ज्योतिषकी बातें बताकर गोचरीलेना),४-आजीवपिंड (अपनी पहली दशा बताकर गोचरी लेना),५-वनीपकपिंड (जैनेतरके पाससे उसका गुरु बनकर गोचरी लेना), ६-चिकित्सा पिंड (चिकित्सा करके गोचरी लेना), ७-क्रोधपिंड (डराकर गोचरी लेना), -मानपिंड (अपनेको उच्च जाति या कुलका बताकर गोचरी लेना), 8-मायापिंड (वेप बदलकर गोचरी लेना), १०-लोभपिंड ( जहाँ स्वादिष्ट भोजन मिलता हो वहाँ पारबार गोचरीकोजाना), ११-पूर्वस्तवपिंड (पुराने सम्बन्धका परिचय देकर गोचरी लेना), १२-संस्तवपिंड (सम्बन्धी के गुण बखानकर गोचरी लेना), १३-विद्यापिंड (बच्चे पढ़ाकर गोचरी लेना), १४-मन्त्रपिंड (यन्त्र मन्त्र बताकर गोचरी लेना), १५चूर्णयोगपिंड (वास-क्षेप इत्यादि देकर गोचरी लेना), १६-मूलकर्मपिंड (गर्भ रहने के उपाय बताकर गोचरी लेना)। [ये सोलह तरहके दोष साधुको अपने ही कारणसे लगते हैं। ]