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७६८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व २. सर्ग ६.
निरंतर पूजा करने लगे। इसीके प्रभावसे इंद्रोंके लिए हमेशा अव्याहत और अद्वितीय विजय-मंगल वर्तता है।
(६८७-७०१) पोंसे परिपूर्ण मनोहर सरोवरकी तरह, अंदर स्थित सगरके चरित्रसे मनोरम, यह अजितनाथ स्वामीका चरित्र, श्रोताओंके लिए इस लोक और परलोकके सुखका विस्तार करे। ( ७०२)
आचार्य श्री हेमचंद्र विरचित त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र नामक महाकाव्यके द्वितीय पर्वमें, अजितस्वामी व सगरचक्रीके दीक्षा और निर्वाण वर्णन नामका, छठा सर्ग समाप्त हुआ।