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त्रिषष्टि शालाका पुन्य-चरित्र पर्व मर्ग १.
करने के लिए वन लमान दीना ली। और बहुत समय तक उसका पालन करकं मोलमें गए (27-४३१)
स्वयंट फिर बोला, "श्राप बंशमें दूसरा एक दंडक नानका राजा हुआ है। उनका शासन प्रचंड था । वह अपने शत्रुओंके लिए मानान यमराज समान था। उनके मणिमाली नामका पुत्र था ! वह अपने तजसे सूर्यक्री नन्ह दिशाओंकों व्याप्त करता था। इंडक राजा पुत्र, मित्र, बी, स्न, स्वर्ण और द्रव्यमें बहुन मृच्छावान था-फैला हुश्रा था और इन सबको वह अपने प्राणास मी अधिक प्यार करना था। आयुष्य पूर्णकर वह आनध्यान मग और अपने मंडारहीम भयानक छ गरी योनिमें जन्मकर रहने लगा। वह मर्वमनी और भयानक पात्मा जो कोई मंद्वार में जाना था उनको निगल जाता था। एक बार उसने मणिमालाको मंडार प्रवेश करते देखा, उसन पूर्वजन्म के मासे नाना कि यह मंग पुत्र है। वह इतना शांत हो गया कि नर्निमान स्नेहसा जान पड़ा। उसकी शांति देखकर मणिमालीन भी समन्न कि यह मेरे पूर्वजन्म का कोई बंधु है। कि नमिनालीने किन्हीं बानी अजगरका हाल पूछकर, नाना कि वह उसका पिता है। उसने अजगरको नयर्मका उपदेश दिया। जगान मा जैनधर्मको समनाकर संगमावत्यागमात्र धारण किया और गुमध्यान भरकर. यह देवना हुया! उस देवदान पाकर एक दिव्य मोनियांनी मला मणिमाती दी थी। वह माला अाज अापक गनमें पड़ी हुई है। श्राप हरिश्चंद्र बंशवर है और मैं मुथुद्धिक वंश जन्मा हूँ, इसलिए आपका नंग व बंशपरंपरागत है। इसलिए नेग