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७६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्ष , सर्ग.
में फिर श्राचे, मगर इससे क्या यह कहा जा सकता है कि यह मार्गका जानकार है ? जिमने कभी पानी में पैर न रहना हो । ऐसा मनुष्य सगेवर या नदीमें, नूंचे बांधकर तैर ले, इससे ज्या यह कहा जाएगा कि उसे तैरना पाता है ? इसी तरह ये लोग गुरकी वासिं शास्त्र पढ़े है, मगर उसके रहम्याथेको जरासा भी नहीं जानते । यदिइन दुर्बुद्धि लोगोंको मेरी बातका विश्वास न हो तो विश्वास दिलानवान्त सात दिन क्या बहुत दूर है ? हे राजेंद्र ! महासमुद्र अपनी उत्ताल तरंगांस चदि जगतको बलमय बनाकर मेरी वाणीको सत्य बना देगा तो ये ल्योतिषग्रंथोंको जाननेवाने तुम्हारे सभासद च्या पर्वतोंको पक्षीकी तरह उड़ते हुए बताएँगे ? क्या वृनकी नग्ह श्राकाशपुष्प बताएंगे? क्या अग्निको जलकी तरह शीतल बताये क्या बंध्याके धेनुकी तरह पुत्र जन्माएँग ? क्या मैंसेकी तरह गयेको सींगबान्ता बताएँगे ? क्या पत्थरोको जहाजोंकी तरह सरोवराम नैराग ? और नारकियोंको बेदनारहिन करेंगे ? या इस तरह असमंजस माय बोलतं हम ये मुन्न लोग सवनमापित शास्त्रों. को अन्यथा बनाएँगे ? ई. राजा ! मैं मात दिन तक तुन्हा नौकरोंके अधिकारमें रहगा। कारण-जो मिथ्यामापी होता है वह ऐसी हालतमें नहीं रह सकता। यदि मेरी बात सातवें दिन सत्र न हो तो चोरकी तरह चांडालोस मुम, सजा दिलवाइए। (२६-३१८)
राजाने कहा, "इस बाझपकी बात संदिग्ध, अनिष्ट या असंमत्र हो अथवा नच हो तो भी सात दिन तुम सयका संदेह मिट जाएगा और उसके बाद सत्यासत्यकी विवेचना