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७५८] त्रिषष्टि शलाफा पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग.
तुम गदायुद्ध जानते हो? तुम दंडयुद्ध में पंडित हो ? तुम शक्ति चलानेमें विशेष सशक्त हो? मूसलशस्त्रमें कुशल हो ? हलशबमें अधिक चतुरहो ? चक्र चलानेमें पराक्रमी हो ? छुरीयुद्धमें निपुण हो? वायुयुद्धमें चतुर हो? अश्वविद्याके जानकार हो ? हाथीकी शिक्षामें समर्थ हो ? व्यूहरचनाके जाननेवाले प्राचार्य हो?व्यूहरचनाको तोड़ने में कुशल हो ? रथादिककी रचना जानते हो? रथोंको चला सकते हो ? सोना चाँदी वगैरा धातुओंको गढ़ना जानते हो ? चैत्य,प्रासाद और हवेली वगैरा चुनने में निपुण हो? विचित्र यंत्रों और किलों वगैराकी रचनामें चतुर हो? किसी सांयात्रिक' के कुमार हो ? किसी सार्थवाहके सुत हो ? सुनार हो? मणिकार हो? वीणामें प्रवीण हो? वेणु बजानेमें निपुण हो ? ढोल बजानेमें चतुर हो ? तबला बनाने में उस्ताद हो ? वाणीके अभिनेता हो ? गायनशिक्षक हो ? सूत्रधार हो ? नटोंके नायक हो ?भाटहो ? नृत्याचार्य हो ?संशप्तकर हो ? चारण हो ? सभी तरहकी लिपियोंके जानकार हो। चित्रकार हो? मिट्टीका काम करनेवाले हो ? या किसी दूसरी तरहके कारीगर हो? नदी, द्रह या समुद्र तैरनेकी क्या कभी तुमने कोशिश की है ? या माया, इंद्रजाल अथवा दूसरे किसी कपटप्रयोगमें चतुर हो ?"
. ( २३१-२४५) इस तरह श्रादरके साथ राजाने उससे.पूछा, तब वह नमस्कार कर विनय सहित इस तरह बोला, "हे राना, जैसे जलका: आधार समुद्र और तेजका आधार सूर्य है, उसी तरह
-जलमार्गसे व्यापार करनेवाला । २-युद्धसे परामुख न होने की प्रतिज्ञा करनेवाला युद्ध।