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________________ श्री अजितनाथ-चरित्रः [७५३ बाद आए हुए शत्रुकी तरह छाती कूटते हुए दास दासी 'हम मारे गए' कहते हुए क्रोध करने लगे। (१६६-१७८) फिर पंखोंकी हवासे और पानी छिड़कनेसे राजा और रानी दुःखशल्यको टालनेवाली संज्ञा पाने लगे ( अर्थात उनकी वेहोशी जाती रही।) जिनके वस्त्र, आँसुओंके साथ बहते हुए काजलसे मलिन हो गए थे। जिनके गाल और नेत्र, फैली हुई केशरूपी लतासे ढंक गए थे, जिनके छातीपर लटकते हुए हारोंकी लड़ियों, हाथोंसे छाती पीटनेके कारण, टूट रही थीं; पृथ्वीपर बहुत लोटनेसे जिनके कंकणोंके मोती फूट रहे थे वे इतने दीर्घनिःश्वास डाल रही थीं मानो वे शोकाग्निका धुआँ थे और जिनके कंठ और अधरदल सूख गए थे-ऐसी रानियाँ अत्यंत रुदन करने लगीं। (१७६-१५२) चक्रवर्ती सगर भी उस समय धीरज, लाज और विवेक. को छोड़, रानियोंकी तरह शोकसे व्याकुल हो इस तरह विलाप करने लगा, "हे कुमारो! तुम कहाँ हो ? तुम भ्रमण करना छोड़ो। अब तुम्हारे लिए राज्य करनेका और मेरे लिए व्रत ग्रहण करनेका अवसर है। इस ब्राह्मणने सत्यही कहा है, 'दूसरे कोई तुमसे नहीं कहते कि चोरके समान छलिया भाग्यके द्वारा तुम लूटे गए हो। हे देव ! तू कहाँ है ? हे अधम नागराज ज्वलनप्रभ ! तू कहाँ है ? क्षत्रियों के लिए अयोग्य ऐसा आचरण करके अब तू कहाँ जाएगा? हे सेनापति तेरेभुजवलकी प्रचंडता कहाँ गई ? हे पुरोहितरत्न ! तेरा क्षेमकरपन कहाँ गया ? हे वर्द्धकी रत्न ! तेरी दुर्गरचनाकी कुशलना क्यागल गई थी ? हे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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