________________
श्री अजितनाथ-चरित्र
[७४३
नाथ स्वामीके भाई दीन व अनाथकी रक्षा करनेवाले और शरणार्थीको शरण देनेवाले हैं। वे स्वयंसहोदरकी तरह, तुम्हारी पुकार सुनकर, आदर सहित पूछते हैं कि तुमको किसने लूटा है ? तुम कौन हो? और कहाँसे आए हो ? हमें सारी बातें कहो या खुद आकर महाराजको अपने दुःखका इसी तरह कारण बताओ जिस तरह रोगी वैद्यको अपने रोगका कारण बताता है।" (६४-७०)
प्रतिहारकी बातें सुनकर ब्राह्मणने धीरे धीरे सभागृहमें प्रवेश किया। उसकी आँखें इस तरह मुंद रही थीं जिस तरह ओससे द्रहके कमल मुंदते हैं; उसका मुख ऐसे मलिन हो रहा था जैसे हेमंत ऋतुमें आधी रातका चाँद मलिन होता है, उसके सुंदर केश रीछकी तरह बिखर रहे थे और वृद्ध वानरकी तरह उसके कपोलोंमें खड़े पड़ रहे थे। (७१-७३) ___ दयालु चक्रवर्तीने ब्राह्मणसे पूछा, "क्या किसीने तुम्हारा सोना ले लिया है? या तुम्हारे वस्त्र और अलंकार छीन लिए है ? या किसी विश्वासघातकने तुम्हारी धरोहर दवा ली है ? या किसी गाँवके रक्षकने तुमको सताया है ? या किसी चुंगीके अधिकारीने तुम्हारा सारामालछीनकर तुम्हें संकट में डाला है ? या तुम्हारे किसी हिस्सेदारने तुम्हारा हिस्सा नहीं दिया है ? या किसीने तुम्हारी स्त्रीका हरण किया है ? या किसी बलवान शत्रुने तुमपर आक्रमण किया है ? या किसी भयंकर आधि या व्याधिने तमको पीडित कर रक्खा है ? या ब्राह्मण जातिके लिए जन्महीसे सुलभ ऐसी दरिद्रताने तुम्हें हैरान कर रखा है ? हे प्राह्मण ! तुम्हें जो दुग्व हो वह मुझसे कहो।" (७४-७६)