________________
७३० । त्रिषष्टि शलाका युझप-चरित्रः पत्र २. सगं ५.
तीर्थकर िविवोंको भी उन्होंने समान श्रद्धा साथ नमस्कार किया। कारण, गर्मश्रावक थे। मंत्री श्राकर्षित करके मँगवाया हो गसे,तत्कालही श्राप दृग, शुद्ध गंधोदकसं,कुमारोंने जिनविवोंको स्नान करवाया । उस समय कई कलशोंको पानीस भरत थे, कई ट्रेन थे, कई प्रमुपर डन्तत थे, कई बाली हुओंको
ठा ले जाने थ; कई स्नात्रविधि बोल रहे थे, कई त्रामर दुला रहे थे, कई स्वरकी धूपदानियाँ उठात थे, कई धूपदानियोंमें उत्तम धूप डालन यं और कई ऊंचे स्वरसं शंत्रादि बाजे बजाने थे। उस समय वेगस गिरत हुए ग्नानकं गंधोदकसे अशापद पर्वत दुगने मरनावान्ता हो गया था। फिर उन्होंन कोमल, कोरे
और देवदृश्य बत्रोंक समान बत्रोंस, नौहरीकी तरह, भगवानके रत्नविवोंको पांछा, उन भक्तिवानाने दासीकी तरह, अपनी इच्छा, विवापर गोशीपचंदन रसस विलपन किया और विचित्र पुष्पांकी मालाओस, तथा दिव्यवन्त्रों तथा मनोहर खनालंकारोंसे विवॉकी पूजा की व इंद्रकल्पकी विडंबना करनबात स्वामी विवॉछ सामने, पट्टांपर चावलोंक अष्ट मांगलिक बनाए। उन्होंने मुरविव समान देदीप्यमान भारनियों में कपूर रचकर, पूना बाद भारती की। और हाथ जोड़ शस्तपस बंदना कर, ऋयमन्त्रामी बगंगकी इस तरह न्तुति की,
(१०७-११६) ह भगवान ! इस अपार और घोर संसाररूपी समुद्रमें श्राप जहाजक समान है और मानक कारणभून हैं। आप हम पवित्र बनाइए। न्याहादरूपी महलका निर्माण करनम नयाँ.
- .:-गर्म पापती
श्रावक थे।