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— ७२४ } त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २, सर्ग ५.
भोगते हुए, सगरके जन्दुकुमार वगैरा साठ हजार पुत्र हुए। उद्यानपालिकाओंके द्वारा पाले हुए वृक्ष, जैसे बढ़ते हैं वैसेही, धाय-माताओंके द्वारा पाले-पोसे गए वे लड़के भी फ्रमसे बड़े हुए। वे चंद्रमाकी तरह धीरे धीरे सारी कलाएँ ग्रहण कर, शरीरकी लक्ष्मीरूपी लताके उपवनरूप यौवनवयको प्राप्त हुए। वे दूसरोंको अपनी अनविद्याकी कुशलता बताने लगे और न्यूनाधिक जाननेकी इच्छासे दूसरोंका शस्त्रकौशल देखने लगे। कलाएँ जाननेवाले वेदुर्दम तूफानी घोड़ोंको भी नचानेकी क्रीड़ामें, घोड़ोंको समुद्रके आवर्तकी लीलासे फिराकर सीधे कर देते थे। देवताओंकी शक्तिको भी लाँघ जानेवाले वे, पेड़के पत्तेको भी अपने कंघोंपर नहीं सहनेवाले, उन्मत्त हाथियोंको भी, उनके कंघोंपर चढ़कर, वशमें कर लेते थे। मदसे शब्द करते हुए, हाथी जैसे विंध्य अटवीमें क्रीड़ा करते हैं वैसेही सफल शक्तिवाने, वे अपनी उम्रवाले लड़कोंके साथ उद्यानादिमें स्वच्छंदतापूर्वक
खेलते कूदते थे। (४२-५०) ... एक दिन बलवान राजकुमारोंने राजसभामें बैठे हुए चक्र. ... वीसे प्रार्थना की, "हे पिताजी! आपने पूर्व दिशाके आभूषण
रूप मगधपति देवको, दक्षिण दिशाके तिलक वरदामपति देव-. ..को, पश्चिम दिशाके मुकुट प्रभासपतिको, पृथ्वीकी दोनों तरफ
स्थित दो भुजाओंके समान गंगा और सिंधु देवीको, भरतक्षेत्र रूपी कमलकी कर्णिकाके समान वैतादयादिकुमार देवको तमिस्रा गुफाके अधिपति क्षेत्रपाल सहश कुमारपाल देवको, और भरत क्षेत्रकी मर्यादाभूमिके स्तंभरूप हिमाचलकुमार देवको, खंड: प्रपाता गुफाके अघिष्ायक नाट्यमाल देवको, नैसर्प वगैरा नव: