________________
५.] निषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सग १
.
कछुएके कालकी तरह इस लोकमें अन्वयरहित कोई वस्तु नहीं है। इसलिए क्षणभंगुरताकी बुद्धि वृथा है। यदि वस्तु राणभंगुर हो नो मतानपरंपरा भी लगभगुरही कही जाएगी। चदि संतानकी नित्यता मानते हैं तो दूसरे समस्त पदार्थ क्षणिक कैसे हो सकते हैं ? यदि सभी पदार्थोको नणिक मानेंगे तो
ली हुई धरोहरको वापस माँगना, बीती बातको याद करना और अभिज्ञान (चिह्न) बनाना आदि बातें भी कैसे संभव हो सकती है ? यदि जन्म होनेके बाद दूसरेही क्षण नाश हो जाता है नो जन्म के बाद दूसरे क्षण यालक अपने मातापिताकी न कहलाएगा और बालक भी दसरे क्षणमं पहले क्षणके मातापिनाको माता-पिता न कहेगा। इसलिए सभी पदार्थाको क्षणअंगुर बताना असंगत है। विवाहके क्षणमें एक पुरुष और स्त्री
कहलाते है. वे यदि क्षणनाशमान होते तो दसरही क्षण पुरुष स्त्रीका पति न रहता और श्री पुरुष की पत्नी नहीं रहती। इसलिए वन्तुको क्षणभंगुर मानना असमंजस हैविचारहीनता है। एक क्षणमें नो पुरे काम करता है दूसरे क्षणमें वह बदलजाता है और उसका फल नहीं भोगवा, कोई अन्य भोगता है। यदि ऐसा हो तो उससे कृतका नाश व अनका श्रागमन ऐसे दो बड़े दोषोंकी प्राप्ति होती है।"
. (३७७-३८३) तव महामति मंत्री बोला, "यह सब माया है। तत्वसे शुद्ध नहीं है। ये सारी चालें जो दिखाई देती है-सपने और मृगतृष्णाकी तरह झूठी है। गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र, धर्म-अधर्म अपना-पराया-ये सारे व्यवहार है, तत्वसे कुछ नहीं हैं। एक