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श्री अजितनाथ-चरित्र
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छावनी डाली और गंगादेवीके उद्देश्यसे अष्टमभक्ततप किया। गंगादेवी भी, सिंधुदेवीकी तरह अष्टमतपके अंतमें, आसन कॉपनेसे, चक्रवर्तीको श्राया जान, आकाशमें आकर खड़ी रही। उसने महाराजाको रत्नोंके एक हजार आठ कुंभ, स्वर्ण-माणिक्य
आदि द्रव्य और रत्नोंके दो सिंहासन भेट किए । सगर राजाने गंगादेवीको विदा कर अष्टमतपका.पारण किया और आनंदके साथ देवीकी कृपाके लिए उसका अष्टाह्निका उत्सव किया।
(२५६-२६३) . वहाँसे चक्रके बताए हुए मार्गसे चक्री दक्षिण दिशामें खंडप्रपाता गुफाकी तरफ चला। वहाँ पहुँच खंडप्रपाताके पास छावनी डाल, नाट्यमाल देवका स्मरण कर उसने अष्टमतप किया । अष्टमतपके अंतमें नाट्यमाल देव अपने श्रासनकपसे, चक्रवर्तीका आना जान, ग्रामपतिकी तरह भेट ले, उसके पास आया। उसने तरह तरहके अलकार चक्रवर्तीके भेट किए और मंडलेश्वर राजाकी तरह नम्र होकर उसकी सेवा स्वीकार की। चक्रीने उसको विदा करके, पारणा करने के बाद हर्पसे उसका अष्टाह्निका.उत्सव किया। यह मानो उपकारका बदला था।
__. (२६४-२६८) . उसके बाद चक्रवर्तीकी आज्ञासे सेनापति आधी सेना लेकर गया और सिंधुके भागकी तरहही गंगाका पूर्व भाग भी जीत आया । (२६६) .. फिर सगर चक्रीने वैताव्यपवतकी दोनों श्रेणियों के विद्याघरोंको पर्वतके राजाओंकी तरहही, शीघ्रतासे जीत लिया। उन्होंने रत्नोंके अलकार, वस्त्र, हाथी और घोड़े चक्रीके भेट