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श्री अजितनाथ-चरित्र
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.तुम इससे अजान हो। यह महा पराक्रमी सगर नामका चक्रवर्ती है । इसे सुर या असुर कोई भी नहीं जीत सकता है। उसकी शक्ति इंद्रके समान है। वह शस्त्र, अग्नि, मंत्र, जहर, अल और तंत्रविद्या-सबके लिए अगोचर है ( यानी किसीका उसपर असर नहीं होता है।) कोई वजकी तरह उसको भी हानि नहीं पहुंचा सकता है। तो भी तुम्हारे अति आग्रहसे हम उसको तकलीफ देनेकी कोशिश करेंगे। हमारी कोशिशका परिणाम इतनाही होगा जितना मच्छरके उपद्रवसे हाथीको होता है।" ( २१४-२१६) - फिर वे मेषकुमार देवता वहाँसे अदृश्य हो गए । उन्होंने चक्रवर्तीकी सेनामें दुर्दिन प्रकट किया। उन्होंने घने अंधकारसे दिशाओंको इस तरह भर दिया कि कोई किसीको ऐसे नहीं देख सकता था जैसे जन्मांध मनुष्य किसीको नहीं देख सकता है। फिर उन्होंने छावनीपर सात दिन-रात, आँधी और तूफान सहित मूसलाधार पानी बरसाया। प्रलयकालके समान उन आँधीपानीको देखकर चक्रवर्तीने अपने हस्त-कमलसे चर्मरत्नको स्पर्श किया। तत्कालही वह छावनीके जितना फैल गया
और तिरछा होकर जलपर तैरने लगा। चक्रवर्ती सेना सहित उसपर जहाजकी तरह सवार हो गए, फिर उन्होंने छत्ररत्नको स्पर्श किया। इससे वह भी चर्मरत्नकी तरह फैल गया और सारी छावनीपर बादलकी तरह छा गया। फिर चक्रीने छत्रके डंडेपर प्रकाशके लिए मणिरत्न रखा। इस तरह रत्नप्रभा पृथ्वीके अंदर जैसे असुर और व्यंतरोंका समूह रहता है वैसेही,चर्म