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2 ] त्रिषष्टि शनाका पुरुष-चरित्रः पर्व, सर्ग.
सशं गुणवानी है। जल रूप, स्पर्श, रसात्मक गुणवाला है; तन रूप और सशं गुगणवान्ता है, मन्न (वायु) स्पर्श गुगावाला है। हम नरह भूनांका भिन्न भिन्न न्यभाव सभी जानते हैं। यदि तुम कहोगे कि, जैन जनमें पिन गुणवाला मानी पैदा होता है, बैमट्टी अंचनन भूनांन चनन पैदा होना है, मगर ऐसा कहना योग्य नहीं है। कारण, माना मी जल होता है। दूसरे मोती और जल दोनों ही पौलिक हैं-युदलग बने हैं, इसलिए उनमें भिन्नता नहीं है। तुम गुड़, पाटा और जलमें पैदा हुई मदशनिका उदाहरण देन हो; मगर यह मशक्ति अंचंतन है, इसलिए चेननमें यह ांन केस मभव हो सकता है ? दंड और यात्माकी पक्रना कमी भी नही कही जा सकती । कारमा मृत शरीर में दनन नहीं पाया जाता। एक पत्थर, पूजा जाता है श्रीर. दुलपर लोग पशाव करते हैं, यह वटांन भी श्रमत्व है। कारणा,पत्थर चनन है इसलिए उसको मुम्बदुःस्वादिका अनुमत्र कैग हो सकता है। इसलिए इस शरीरले अलग परलोक जानेवाला श्रात्मा है, और धर्म अयन भी हैं। (कारण, परलोक जानवाला श्रात्माही यहाँ मन-बुरका फल लेकर जाना है. और वहीं भोगता है। श्रागक्री गरमीम मवन सिंघल जाना है, नही स्त्रीके श्रालगन पुरुषों का विवक चला जाता है। श्रनगन पोर, अधिक रसवात पाहार पुदलका उपमान करनेवाला श्रादमी उन्मच पशुत्री नरह उचित क्रमशो नहीं जानता। चंदन, अंगर, मन्ती श्रार अंसर आदिका मुघल कामदेव सपदिकी दाद मध्यवर, श्राममा करता है। जैस शॉटीम ऋपड़ा लनने यादमीकी गति नमनानी है नही