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श्री अजितनाथ चरित्र
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सत्तानबे हजार तेइस विमान हैं।"
अनुत्तर, विमान में चार विजयादिक विमानों में द्विचरिम' देवता हैं और पाँचवें सर्वार्थमिंद विमानमें एक चरिम' देवता हैं। सौधर्म कल्पमें सर्वार्थसिद्ध विमान तक देवतायोंकी स्थिति, क्रांति, प्रभाव, लेश्या-विशुद्धि, मुब, इंद्रियांक विषय
और अवधिज्ञानमें पूर्व पूर्वकी अपेक्षा उत्तर उत्तरके अधिक अधिक है; और. परिग्रह ( परिवारादि), अभिमान, शरीर
और गमन क्रिया अनुक्रमसे कम कम हैं। सबसे जघन्य स्थितिबाल देवताओंको सात स्तोकक अंतरसे साँस पाती है,
और चोयमक्व (यानी एक रात दिन के अंतरसे वे भोजन करते हैं। पल्लोषमकी स्थितिवाले देवताओंको एक दिन अंतरसे साँस आती है और पृथक्त दिनकं (यानी दो से नी दिनके अंतरसे वे भोजन करते हैं। इनके बाद जिन देवता
ओंकी जितन सागरोपमकी स्थिति है उन देवताओंको उतनेही पक्षके बाद साँस पाती है और उतनही हजार बरसके बाद वे भोजन करते है। अर्थात तनीस सागरोपमकी श्रायुवाले सर्वार्थमिद्धिक देवताओंको प्रति तेतीस पक्षक अंतरस वासोवास श्राता है और प्रति ततीस हजार वर्ष के बाद भोजन करते हैं। प्राय: देवता सवेदनावालही होते हैं। कमी असवेंदना होती है तो उसकी स्थिति अंतर्मुहूनहीकी होती है। मुहर्चक बाद असवेदना नहीं रहती है। देवियोंकी उत्पत्ति ईशान देवलोक
१-दो जन्मक बाद मान बानेवाले ।२-एकही जन्म के बाद मोन नानवाल । ३-सात श्वासोश्वाम काज । ४-अमन्यात (एक मुंबल्या विशेष वाँकी श्रायुधाल।