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६५६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. .
देवता रहते हैं। समुद्र में बयालीस हजार योजन जानेपर चारों दिशाओं में वे चार हैं। इसी तरह चारों विदिशाओंमें कर्कोटक, कार्दमक, कैलाश और अरुणप्रभ नामके चार सुंदर अनुवेलंधर पर्वत हैं, वे सभी रत्नमय है। उन पर्वतोपर कर्कोटक, विद्युजिह्व, कैलाश और अरुणप्रभ नामके देव, उनके स्वामी, निरंतर वहाँ बसते हैं। वे सभी पर्वत हरेक एक हजार सात सौ इक्कीस योजन ऊँचे हैं। वे मूलमें एक हजार योजन चौड़े हैं, और शिखरपर चार सौ चौबास योजन चौड़े हैं। उन सभी पर्वतोपर उनके स्वामी देवताओंके सुंदर प्रासाद-महल हैं। फिर बारह हजार योजन समुद्र की तरफ जानेपर पूर्वदिशासे संबंधित दो विदिशाओं में दो चंद्रद्वीप हैं। वे विस्तारमें और चौड़ाईमें पूर्व के अनुसार हैं; और उतनेही प्रमाणवाले दो सूर्यद्वीप पश्चिम दिशासे संबंधित दो विदिशाओं में हैं; और सुस्थित देवताओंका आश्रयभूत गौतमद्वीप उन दोनोंके बीच में है। उपरांत लवण समुद्र संबंधी शिखाकी इस तरफ व वाहरकी तरफ चलनेवाले चंद्रमाओं और सूर्यों के आश्रयरूप द्वीप हैं और उनपर उनके प्रासाद बने हुए हैं । वह लवण समुद्र लवण रसवाला है। ..."
(६१६-३३६) "लवण समुद्रके चारों तरफ उससे दुगने विस्तारवाला धातकी खंड है। जंबूद्वीपमें जितने मेरुपर्वत, क्षेत्र और वर्षधर पर्वत कहे गए हैं उनसे दुगने, उन्हीं नामोंके धातकी खंडमें हैं। अधिक-उत्तर और दक्षिणमें धातकी खंडकी चौड़ाईके अनुसार दो इष्वाकार (धनुषके आकार के) पर्वत हैं। उनके द्वारा विभाजित पूर्वाध और पश्चिमार्धमें हरेकमें जंबूद्वीपके समान संख्या