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६५४ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
वैजयंत, जयंत और अपराजित नामके चार द्वार हैं।
. (६११-६१५-) __ "शुद्र हिमवान और महाहिमवान पर्वतोंके मध्य में यानी हिमवंत क्षेत्रमें शब्दापाती नामक वृत्तवैताव्य पर्वत है; शिवरी
और रुक्मी पर्वतोंके बीचमें विकटापानी नामका वृत्तवैताव्य पर्वत है; महाहिमवान और निषध पर्वतोंके मध्यमें गंधापाती नामका वृत्तवैनाढ्य पर्वत है और नीलवन तथा नवमी पर्वतोंके बीच में माल्यवान नामका वृत्त ताठ्य पर्वत है। वे व वैताव्य पर्वत पल्या कृति' वाले और एक हजार योजन ऊँचे हैं।
(६१६-६१८) ___ "जबूद्वीपके चारों तरफ लवगण समुद्र है। उसका विस्तार संवृद्वीप तिगुना है। बीच में एक हजार योजन गहरा है।दोनों तरफको लगतीसे क्रमशः उतरते हुए पचानवे योजन लाएँ तब तक गहराई में और ऊंचाईमें उमका जल बढ़ता जाता है। मध्यमें दस हजार योजनमें सोलह हजार योजन ऊँची इस लवण समुहके पानीकी शिखा है। उसपर दिन में दो बार बार. माटा होता है। बारका पानी दो कोस तक चढ़ना है। उस लवण समुद्र के बीच में पूर्वादि दिशाके क्रमसे बडवामुत्र, केयूप, यूप और ईश्वर नामक बड़े मटके के कारके चार पातालकलश हैं। उन प्रत्येकका विचला भाग एकलाख योजन चौड़ा है, उनकी गहराई एक लाख योजनकी है। उनकी वचरत्नकी
-गुजराती में इसका अर्थ पाला किया गया है। इसका श्रमि. प्राथ नाज मरनेका बरतन होता है। 2-किनारेले। . .