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. 'श्री अजितनाथ परित्र
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कुमारोंके जलकाँत और जलप्रभ नामके दो इंद्र है। द्वीपकुमारों के पूर्ण और अवशिष्ट नामके दो इंद्र हैं। और दिपकुमारोंके अमित और अमितवाहन नामके दो इंद्र है । (५०४-५१४)
रत्नप्रभा भूमिमें छोड़े हुए हजार योजनमें ऊपर और नीचे सौ सौ योजन छोड़नेके बाद बीचके पाठ सौ योजनमें दक्षिणोत्तर श्रेणीके अंदर आठ तरहके व्यंतरोंकी निकाय वसती है। उनमें पिशाच व्यतर' कदंबवृक्षके चिह्नवाले हैं, 'भूतव्यतर' सुलसवृक्षके चिह्नवाले हैं, 'यक्ष व्यंतर' वट वृक्षके चिह्नवाले हैं, 'राक्षस व्यंतर' खद्वांगके' चिह्नवाले हैं, 'किन्नर व्यंतर' अशोकवृक्षके चिह्नवाले हैं, 'किंपुरुष व्यंतर' चंपक वृक्षके चिह्नवाले हैं, 'महोरग व्यंतर' नाग वृक्षके चिह्नवाले हैं और गंधर्व व्यंतर तुबरू वृक्षके चिह्नवाले हैं। उनमें
पिशाच व्यतरोंके काल और महाकाल नामके इंद्र है। भूत व्यतरोंके सुम्प और प्रतिरूप नामके इंद्र हैं । यक्ष व्यतरोंके पूर्णभद्र और मणिभद्र नामके इंद्र है। राक्षस व्यंतरोंके भीम
और महाभीम नामके इंद्र है। किन्नर व्यंतरोंके किन्नर और किंपुरुप नामके इंद्र है। किंपुरुप व्यतरोंके सत्पुरुष और महापुरुप नामके इंद्र है। महोरग व्यंतरोंके अतिकाय और महाकाय नामके इंद्र है। और गंधर्व व्यंतरोंके गातरति और गीतयशा नामके इंद्र हैं। इस तरह व्यतरोंके सोलह इंद्र हैं।
...... .. .. (५१५-५२३). "रत्नप्रभा भूमिके छूटे हुए सौ योजनमेंसे ऊपर और नीचे '१-शिमका अस्त्रविशेष ।
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