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६४४] त्रिषष्टि शताफा पुरुप-चरित्रः पर्ष २. सर्ग ३.
__ और भयादि क्रमश: बढ़ते जाते हैं। यह बात निश्चयपूर्वक · समझना चाहिए (४७७-५२३) __ "रत्नप्रभा मृमिकी मोटाई एक लाख अम्सी हजार योजन है। उसमेंस एक एक हजार योजन ऊपर और नीचे छोड़ देनेसे बाकी जो माग है उसमें भवनपति देवोंके भवन है। वहाँ उत्तर
और दक्षिण दिशाओं में, जैसे राजमार्गके दोनों तरफ सिलसिलेवार मकान होन है वैसेही, भवनपनियोंके भवन है और उन्हीं में वे रहते हैं। उनमें मुकुटमणि चिह्नवाले अमुरकुमार भवनपनि है, जिनके चिवाले नागकुमार भवनपति है, वचके चिवाले विशुन्झुमार हैं. गमड़क चिह्ववान सुपर्णकुमार है, घटक चिहान्न अग्निकुमार है, अन्य चिह्नवाले वायुकुमार है, बढेमानके। चिवाले स्तनितकुमार हैं, मकरके चिह्नवाले उदधिकुमार है, कसरीनिहक चिह्ववाने द्वीपकुमार है, और हाथीके चियान्न दिकुमार हैं। उनमें अमुरकुमारोंके चमर और बली नामक दो इंद्र हैं। नागकुमारी धरण और भूतानंद नामके दो इंद्र है। विद्यकुमारोंके हरि और हरिसह नामके दो इंद्र है। सुपर्णकुमारोंक वणुदेव और वेणुदारी नामक दो इंद्र हैं। अग्निकुमारोंके अग्निशिख और अग्निमाणब नामके दो इंद्र है। वायुकुमारक बलंब और प्रभंजन नामके दो इंद्र हैं। स्तनितकुमारोंके मुघोष और महाघोष नामक दो इंद्र हैं। अग्नि
-शुगवनपुट ( शराब युगल ) तत्वार्यत्र पेत्र १६२ ( मुखजालना ऋन टीकायाजा) शगवका अथं मिट्टीका रद होता