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६४२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
ऊपरसे मृदंग जैसी आकृतिवाला है। यह लोक तीन जगतसे व्याप्त है। इसमें नीचेकी सात भूमियों महाबलवान घनांभोधि, धनवात और तनुवातसे घिरी हुई हैं। अधोलोक, तिर्यगलोक और अर्चलोकके भेदसे यह तीन जगत कहलाता है। ये तीन लोकके विभाग रुचकप्रदेशकी अपेक्षासे होते हैं। मेरु पर्वतके अंदरमध्यमें गाय के थनके याकारवाले, आकाशप्रदेशोंको रोकनेवाले चार नीचे और आकाशप्रदेशोंको रोकनेवाले चार अपर, इस तरह अठरुचकप्रदेश हैं। उन रुचक्रप्रदेशों के ऊपर और नीचे नौ सौ, नौ सौ योजन नकका भाग तिर्यगलोक कहलाता है। उस तिर्यगलोकके नीचे अधोलोक है। वह नौ सौ योजन कम सात रज्जुप्रमाणका है। अधोलोकमें एक एकके नीचे अनुक्रमसे सात भूमियाँ हैं। इनमें नपुंसक वेदवाले नारकियोंके भयंकर निवासस्थान है।
नरकोंके नाम | नरकोंकी मोटाई
नरकावासा
रत्नप्रभा एकलाख अस्मीहजार योजन तीस लाख शर्कराप्रभा " वत्तीस ,,, पचीस लाख वालुकाप्रमा , अट्ठाईस,,, पंद्रह लाख पंकप्रभा : वास ""
दस लाख धूमप्रभा " अठारह ,, तीन लाख तम:प्रमा |, सोलह ,, पाँच कम एकलास्त्र महातम.प्रमा एकलाख पाठ हजार योजन पाँच
"इन रत्नप्रभादि सातों भूमियोंके, हरेकके नीचे मध्यमें