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श्री अजितनाथ-चरित्र
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की है। जब आपके चरण कदम रखते हैं तव सुर और असुर कमल बनाने के बहाने कमलमें बसनेवाली लक्ष्मीका विस्तार करते हैं। मैं मानता है कि दान, शील, तप और भाव चार तरहके इस धर्मको एक साथ कहने के लिए आप चार मुखवाले हुए हैं। तीन लोककी तीन दोषोंसे बचानेकी प्रवृत्ति कर रहे हैं, इसीलिए मालूम होता है कि देवताओंने ये तीन कोट बनाए हैं।
आप पृथ्वीपर विचरते हैं तब कॉटे अधोमुख हो जाते हैं। मगर इसमें कोई अचरजकी बात नहीं है। कारण-जब सूरज उगता है तब अँधेरा कभी सामने नहीं आता है-नहीं आ सकता है। केश, रोम, नस,डाढ़ी और मूंछे बड़े नहीं हैं; जैसे थे वैसेही है। (यह योगकी महिमा है) इस तरहकी बाहरी योगमहिमा, तीर्थकरोंके सिवा दूसरोंको नहीं मिली। शब्द, रूप, रस, गंध और स्पश नामके पाँच इंद्रियोंके विषय, आपके सामने, तार्किक लोगों की तरह प्रतिकूलता नहीं करते। सभी ऋतुएँ, असमयमें की हुई कामदेवकी सहायताके भयसे हों ऐसे, एक साथ आपके चरणोंकी सेवा करती हैं। भविष्यमें आपके चरणोंका स्पर्श होनेवाला है यह सोचकर, देवता सुगंधित जलवर्षासे और दिव्य पुष्पोंकी वृष्टिसे पृथ्वीकी पूजा करते हैं। हे जगतपूज्य ! जब पक्षी भी चारों तरफसे आपकी परिक्रमा करते हैं और आपके विपरीत नहीं चलते हैं तव, जो मनुष्य होकर तुमसे विमुख वृत्ति रखते हैं और जगतमें बड़े होकर फिरते हैं उनकी क्या गति होगी.? जब आपके पास आकर एकेंद्रिय पवन भी प्रति. कूलताका त्याग करता है तब पंचेंद्रिय तो दुःशील हो ही कैसे सकता है आपके माहात्म्यसे.चमत्कार पाए हुए वृक्ष भी मस्तक